नई दिल्ली । भारत की पहली महिला चिकित्सक रुक्मा बाई राऊत का जन्म 1864 में आज ही के दिन मुंबई में हुआ था। ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान भारत में जब महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर भी जागरूक नहीं थीं तब उन्होंने डॉक्टरी के पेशे में प्रवेश कर एक मिसाल कायम की।
1894 में वह भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। वह एक ऐतिहासिक कानूनी मसले के केंद्र में भी रहीं जिसके परिणामस्वरूप आज ऐज ऑफ कॉन्सेंट एक्ट 1891 कानून यानी दो वयस्कों के बीच शादी करने की वैधानिक उम्र तय की गई। गूगल ने उनके सम्मान में 22 नवंबर 2017 को निम्न डूडल बनाया था।
पिता से मिली प्रेरणा
रुक्मा बाई की मां का नाम जयंती बाई था। 15 साल की उम्र में रुक्मा बाई का जन्म हुआ। 17 साल की उम्र में जयंती बाई विधवा हो गईं, जिसके बाद उन्होंने सखाराम अर्जुन से दूसरी शादी की जो मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर और समाज सुधारक थे। रुक्मा बाई की शिक्षा में उनके पिता का काफी योगदान रहा।
महिलाओं के हक में बना कानून
इसके बाद 19 मार्च 1891 में ब्रिटिश भारत में ऐज ऑफ कॉन्सेंट एक्ट 1891 कानून बनाया गया, जिसमें शारीरिक संबंधों के लिए शादीशुदा और गैर शादीशुदा महिलाओं की सहमति की उम्र 10 से बढ़ाकर 12 साल कर दी गई थी।
बाल विवाह को दी चुनौती
निजी और पेशेवर जीवन में हर चुनौती को स्वीकार करने वाली रुक्मा बाई का विवाह 11 साल की उम्र में ही आठ साल बड़े भीकाजी से हो गया था। शादी के बाद वह अपने माता-पिता के साथ रहती थीं। 1884 में भीकाजी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में पति का पत्नी के ऊपर वैवाहिक अधिकार का हवाला देते हुए याचिका दायर की जिसके बाद हाईकोर्ट ने उन्हें पति के साथ रहने या जेल जाने का आदेश दिया। रुक्मा बाई ने तर्क दिया कि उन्हें उस विवाह में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जो तब हुआ जब वह इसके लिए सहमति देने में असमर्थ थीं। इस तर्क ने बाल विवाह और महिलाओं के अधिकारों पर लोगों का ध्यान खींचा।
पहली महिला चिकित्सक
1889 में रुक्मा बाई लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर विमेन में अध्ययन करने इंग्लैंड गईं। शिक्षा पूरी होने के बाद 1894 में वह वापस भारत लौटीं और सूरत में बतौर चीफ मेडिकल अधिकारी पदभार संभाला। उन्होंने डॉक्टर के पेशे में तकरीबन 35 साल बिताए। उन्होंने दोबारा शादी नहीं की और जीवन के अंतिम समय में समाज सुधारक के तौर पर काम करती रहीं। 25 सितंबर 1955 में 91 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
चिकित्सा क्षेत्र में इन्होंने भी रचा इतिहास
रुक्मा बाई भारत की पहली प्रैक्टिसिंग महिला डॉक्टर थीं, लेकिन आनंदी गोपाल जोशी डॉक्टर के रूप में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। हालांकि बीमारी की वजह से वह कभी प्रैक्टिस नहीं कर सकीं और उनकी असामयिक मौत हो गई।
कादंबिनी गांगुली के लिए भी पहली महिला डॉक्टर होने के दावे किए जाते हैं। इन्होंने 1886 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से डिग्री हासिल की। ये स्त्री रोग विशेषज्ञ थीं। 1882 में आर्ट से स्नातक करने पहली भारतीय महिला होने का खिताब भी इन्हें ही दिया जाता है।
आज महिला डॉक्टरों की कमी
लैंसेट मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक देश में महज 17 फीसद महिला एलोपेथी डॉक्टर हैं। 2014-15 में देश में 23522 सीटों पर एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले छात्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की तादाद 50.6 फीसद अधिक रही है। पिछले पांच सालों में पुरुषों के मुकाबले 4500 अधिक महिलाओं ने डॉक्टर की डिग्री हासिल की लेकिन उनमें से चंद ही प्रैक्टिस करती हैं। देश में अभी भी प्रैक्टिसिंग महिला डॉक्टरों की कमी है।
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