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    पाक सुप्रीम कोर्ट के आयोग ने इमरान को दिखाया ‘आईना’, बताया देश के हिंदू मंदिरों का हाल

    भारत में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की दुहाई देने वाले पाकिस्तान में हिंदुओं की क्या स्थिति है यह किसी से छिपी नहीं है। अब पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय के बनाए आयोग ने अपनी रिपोर्ट में एक बार फिर से इमरान खान सरकार को आईना दिखाने का काम किया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं के मंदिर कितनी बदतर हालात में हैं।

    पाकिस्तान के अखबार डॉन न्यूज के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने हिंदू मंदिरों की स्थिति पर रिपोर्ट देने के लिए डॉक्टर शोएब सदल के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग गठित किया गया था। आयोग ने शीर्ष अदालत को पांच फरवरी को अपनी सातवीं रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में अफसोस जताया गया है कि ईवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) ने हिंदुओं के अधिकांश प्राचीन धर्म स्थलों को संभालने में विफल रहा है।

    रिपोर्ट में देश में स्थित हिंदू समुदाय के सबसे सम्मानित स्थलों की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ शोएब सदल की आयोग की स्थापना सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई थी। हालांकि इसमें तीन सहायक सदस्य- डॉ रमेश वांकवानी, साकिब जिलानी और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल भी हैं। अटॉर्नी जनरल ने डिप्टी अटॉर्नी जनरल को आयोग की तथ्यान्वेषी गतिविधियों में भाग लेने के लिए नामित किया था।

    आयोग के सदस्यों ने छह जनवरी को चकवाल के कटस राज मंदिर और सात जनवरी को मुल्तान में प्रह्लाद मंदिर का दौरा किया था। रिपोर्ट में पाकिस्तान के चार सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मंदिरों में से दो की जानकारी दी गई है और इनकी तस्वीरें भी रिपोर्ट के साथ संलग्न हैं।

    रिपोर्ट में कहा गया कि टेरी मंदिर (करक), कटस राज मंदिर (चकवाल), प्रह्लाद मंदिर (मुल्तान) और हिंगलाज मंदिर (लासबेला) के जीर्णोद्धार के लिए सहयोगात्मक प्रयास किए जाने चाहिए। आयोग ने रिपोर्ट में बताया है कि पाकिस्तान में 365 मंदिर हैं जिनमें से सिर्फ 13 के रखरखाव की जिम्मेदारी ईटीपीबी ने ली हुई है।

    65 मंदिर ऐसे हैं जिनकी देखरेख हिंदू समुदाय खुद कर रहा है तो वहीं 287 मंदिरों को भू-माफियाओं के हवाले छोड़ दिया गया है। उन्होंने हिंदुओं और सिखों के पवित्र स्थलों के पुनर्वास के लिए एक कार्यकारी समूह स्थापित करने के लिए ईटीपीबी अधिनियम में संशोधन का भी सुझाव दिया गया है।

    रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 73 साल बीतने के बाद भी ईटीपीबी की रुचि सिर्फ प्रवासित अल्पसंख्यकों की महंगी संपत्तियों को कब्जे में लेने में रही। इतना ही नहीं सैकड़ों कस्बों में अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मस्थलों, पूजा स्थलों या अन्य संयुक्त संपत्तियों को भी ईटीपीबी ने अपने कब्जे में लिया हुआ है।

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