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    हिमाचल प्रदेश की राजनीति में 6 दशक तक सक्रिय रहे पंडित सुखराम को प्रदेश की पॉलिटिक्स का फीनिक्स कहा जाता है, क्योंकि जब भी यह माना गया कि पंडित सुखराम का राजनीतिक करियर अस्त हाेने वाला है तो वे फीनिक्स की तरह तमाम संभावनाओं और अटकलों काे नकारते हुए दाेबारा से न केवल राजनीति में सक्रिय हुए, बल्कि अपनी मजबूत पैठ साबित की।

    दिल्ली से की थी लॉ की पढ़ाई

    पंडित सुखराम का जन्म 27 जुलाई 1927 काे मंडी के कोटली में एक गरीब परिवार में हुआ था।

    प्रारंभिक शिक्षा मंडी के स्कूल से हासिल की और उसके बाद वह दिल्ली लॉ स्कूल में पढ़ने के लिए गए।

    1953 में उन्होंने मंडी जिला अदालत में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस भी की।

    इसके बाद 1962 में उन्होंने राजनीति की ओर रुख कर लिया।

    उसके बाद उन्होंने पलट कर नहीं देखा और 6 दशक हिमाचल की राजनीति में सक्रिय रहे।

    1998 में भाजपा को समर्थन देकर BJP की सरकार बनवाई

    1996 में संचार मंत्री रहते घोटाले में नाम आने पर जब कांग्रेस ने पंडित सुखराम को पार्टी से निकाला तो लगा कि पंडित सुखराम की राजनीति का अंत हो गया है, लेकिन वे अपनी पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस बनाकर न सिर्फ मार्च 1998 के विधानसभा चुनाव में पहली दफा प्रदेश में एक थर्ड फ्रंट सामने लाए, बल्कि अपने जीते हुए विधायकों को भाजपा में शामिल करवाकर सबसे ज्यादा 31 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को सरकार बनाने से दूर कर दिया।

    फिर परिवार को राजनीति में लेकर आए्र

    पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा 1993 में बनी कांग्रेस सरकार में पहली बार जीतते ही युवा मामलों के राज्यमंत्री बन गए थे।

    लेकिन 1998 में भाजपा सरकार बनने पर अनिल शर्मा के पास कोई जगह नहीं थी।

    क्योंकि अनिल शर्मा की सीट से पंडित सुखराम खुद जीतकर आए थे।

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