पुलिस ने अब तक 1000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। वहीं, सरकार की मॉरल पुलिसिंग के खिलाफ युवाओं ने गरशाद नामक एक मोबाइल ऐप बना लिया है। इस ऐप को पिछले 5 दिन में 10 लाख लोगों ने डाउनलोड किया है। युवा इसके जरिए सीक्रेट मैसेज चला रहे हैं। इसे देखते हुए तेहरान में मोबाइल इंटरनेट बंद और इंस्टाग्राम को ब्लॉक कर दिया गया है।
ईरान में 16 सिंतबर से शुरू हुआ हिजाब के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन अब भी जारी है। 21 सितंबर तक ये 15 शहरों में फैल गया। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव भी हो रहे हैं। लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं। गुरुवार को भी पुलिस फायरिंग में 3 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई। पांच दिन में यह आंकड़ा 8 हो गया है। सैंकड़ों लोग घायल हैं।
मौलवी महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ हैं: प्रदर्शनकारी
प्रदर्शकारियों का कहना है कि लोग हमारे विरोध को बगावत समझ रहे हैं, लेकिन मौलवियों को ये बात समझ में नहीं आएगी। वे आंखें मूंदे बैठे हैं। सरकार इन मौलवियों के भरोसे ज्यादा दिन तक शासन नहीं चला पाएगी। ये मौलवी महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ हैं।
इस बीच सर्वोच्च धर्मगुरु अयातुल्ला खामेनेई ने बुधवार को एक सभा को संबोधित किया, लेकिन उन्होंने हिजाब विरोधी प्रदर्शनों का कोई भी जिक्र नहीं किया।
ईरान पुलिस ने 13 सितंबर को महसा अमिनी नाम की युवती को हिजाब नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार किया था। तीन दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। ईरानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमिनी गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही कोमा में चली गई थी। उसे अस्पताल ले जाया गया। रिपोर्ट्स में कहा गया कि अमिनी की मौत सिर पर चोट लगने से हुई।
महसा अमिनी की मौत और हिजाब मेंडेटरी होने का विरोध जताते हुए कई महिलाओं ने अपने बाल काट लिए। इतना ही नहीं हिजाब भी जला दिए। इसके सपोर्ट में एक महिला पत्रकार ने वीडियो के साथ लिखा- ईरान की महिलाएं पुलिस कस्टडी में 22 साल की महसा अमिनी की मौत और हिजाब पहनना मेंडेटरी होने का विरोध ऐसे ही बाल काट कर और हिजाब जला कर दिखा रही हैं।
हिजाब पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू हुई
ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में मेंडेटरी किया गया था, लेकिन 15 अगस्त को प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी ने एक ऑर्डर पर साइन किए और इसे ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा गया। 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था।
- 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी।
- 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी।
- 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं।
- 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले।
- लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई। साथ ही अबॉर्शन को कानूनी अधिकार बनाया गया।
- पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।
1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया। शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए