चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा कि मौजूदा कानून के मुताबिक ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिनके जरिए अपने नाम में धार्मिक शब्द/धार्मिक चिन्ह का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द की जा सके.
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2005 में चुनाव आयोग ने नीतिगत फैसला लिया कि नाम में धार्मिक शब्दों का इस्तेमाल करने वाली राजनीतिक दलों को मान्यता नहीं दी जाएगी. उसके बाद से इलेक्शन कमीशन ने ऐसी किसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं किया है, पर यहां याचिकाकर्ता की ओर कई ऐसी पार्टियों का हवाला दिया गया है, जिनका रजिस्ट्रेशन 2005 से पहले हुआ था. कोर्ट में दायर अर्जी में याचिकाकर्ता ने AIMIM, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, हिंदू एकता दल जैसी पार्टी का उदाहरण दिया है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह राजनीतिक दलों पर धार्मिक नामों और प्रतीकों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करे. निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था. कोर्ट ने न्यायालय ने वकील के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए मामले को 25 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट सैयद वसीम रिज़वी की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कहा गया है कि धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है. न्यायालय ने सितंबर में निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था.