मायावती उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) में फिर से जान फूंकने की रणनीति बना रही हैं. मंगलवार को उन्होंने विश्वनाथ पाल को यूपी बसपा की कमान सौंप दी. विश्वनाथ पाल अयोध्या के रहने वाले हैं. माना जा रहा है कि यूपी में ओबीसी जातियों को अपने पाले में करने के लिए मायावती ने यह कार्ड खेला है. यह पहली बार नहीं है जब बसपा ने पाल समुदाय के किसी शख्स को यूपी में कमान सौंपी है. 1995 में भगवत पाल और 1997 में दशरथ पाल प्रदेश बसपा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. अब दो दशक बाद फिर मायावती ने वही दांव चला है.
2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देजनर यूपी की सभी पार्टियां ओबीसी जातियों को अपने पाले में रखना चाहती हैं. बीजेपी का फोकस जहां गैर यादव ओबीसी पर है, वहीं अखिलेश यादव की सपा की नजर ओबीसी जातियों पर लगी हुई है. यूपी विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी जातियों के कई नेता बीजेपी का दामन छोड़ सपा की साइकिल पर सवार हो गए थे. लेकिन फिर भी सपा का सरकार बनाने का सपना अधूरा रह गया. लेकिन उसके वोट प्रतिशत और सीटों की संख्या में इजाफा हुआ.
ओबीसी को लुभाने की कोशिश
एक अनुमान कहता है कि मायावती के साथ अभी भी दलित वोटर बना हुआ है. लिहाजा सियासी बिसात पर मायावती ने ओबीसी नेता का दांव चला है. अगर मुस्लिम, ओबीसी और दलित वोटों को मायावती अपने हिस्से में लाने में सफल होती हैं, तो यूपी की राजनीति में स्थितियां बदल सकती हैं. निकाय चुनाव से पहले मायावती की इस चाल को नए एक्सपेरिमेंट के तौर पर देखा जा रहा है. अगर यह कामयाब रहा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती ओबीसी नेताओं को फ्रंटफुट पर रख सकती हैं.
किसका खेल बिगाड़ेंगी मायावती?
विश्वनाथ पाल को यूपी बसपा का कामकाज देकर मायावती ने दोहरा दांव चला है. पहला राम मंदिर निर्माण के जरिए हिंदू वोटबैंक बढ़ाने की बीजेपी की रणनीति पर हमला बोला है. दूसरा ओबीसी जाति के नेता को कमान सौंप कर बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल एस को भी घेरने की कोशिश की है. साथ ही साथ सपा को भी चुनौती देने की कोशिश की गई है.
भले ही कई दिग्गज बसपा छोड़कर चले गए लेकिन विश्वनाथ पाल मजबूती से मायावती के साथ खड़े रहे. ओबीसी जातियों को अपने पाले में लाने के लिए यूं तो मायावती ने आरएस कुशवाहा, रामअचल राजभर और भीम राजभर को कमान सौंपी. लेकिन बीजेपी की तुलना में अब बसपा से ओबीसी वोटर दूर होता जा रहा है. विधानसभा चुनावों में बसपा का खराब प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है. विश्वनाथ पाल बसपा के लिए क्या रणनीति बनाते हैं इसका फैसला तो निकाय चुनाव में हो जाएगा.देखना होगा कि मायावती का यह दांव लोकसभा चुनाव में कितना कारगर होगा.