आईआईटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने मानव कोशिकाओं और पर्यावरण में हानिकारक धातुओं का पता लगाने के लिए नैनो मैटेरियल कोशिकाएं विकसित की हैं। यह तकनीक धातु विषाक्तता की पहचान और प्रबंधन में सहायक होगी, जिससे बीमारियों के उपचार और पर्यावरण निगरानी में सुधार होगा। वैज्ञानिकों ने इन नैनोकणों को विशेष पेरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल्स सामग्री से निर्मित किया है।
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ये नैनो कण जीवित कोशिकाओं में मौजूद जहरीली धातुओं जैसे पारे का पता लगा सकते हैं। ये नैनोक्रिस्टल्स बहुत छोटे होते हैं (एक बाल की मोटाई से लाख गुना छोटे) और रोशनी के साथ खास तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। इन्हें कोशिकाओं में फ्लोरोसेंट (चमकदार) जांच के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, पानी में जल्दी खराब हो जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने इन नैनोक्रिस्टल्स को सिलिका और पॉलिमर की कोटिंग से सुरक्षित किया, जिससे उनकी स्थिरता और चमक पानी में बढ़ गई। ये नैनोक्रिस्टल्स लंबे समय तक काम कर सकते हैं और विशेष तरंगदैर्ध्य की रोशनी में चमकते हुए हानिकारक पारे का सटीक पता लगा सकते हैं।
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रोगों की पहचान और पर्यावरण निगरानी में आ सकता है बड़ा बदलाव
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नए आविष्कार से रोगों का पता लगाने और पर्यावरण की निगरानी में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। यह जैविक प्रणालियों में धातुओं की विषाक्तता का पता लगाने और उसका प्रबंधन बेहतर बनाएगा। आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर सैकत भौमिक ने कहा, इन पेरोव्स्काइट नैनोक्रिस्टल की एक प्रमुख विशेषता उनकी उनकी संकीर्ण उत्सर्जन रेखा है, जो धातु का पता लगाने के लिए हाई सिग्नल-टू-नोइस अनुपात के कारण संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए उपयुक्त है।
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भौमिक ने कहा कि पारंपरिक इमेजिंग विधियां अक्सर प्रकाश के बिखराव से जूझती हैं, जिससे गहरी कोशिका परतों से स्पष्ट छवियों को कैप्चर करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, पेरोवस्काइट नैनोक्रिस्टल की मल्टी फोटोन अवशोषण से गुजरने की क्षमता इस सीमा को पार कर जाती है, जिससे अधिक स्पष्ट और अधिक डिटेल इमेजिंग मिलती है। ये गुण उन्हें चिकित्सा और जैविक अनुसंधान में उन्नत फ्लोरोसेंस इमेजिंग के लिए आदर्श बनाते हैं।
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नैनोमोलर स्तर तक पारे की पहचान संभव
पारा बहुत खतरनाक होता है और खाने-पीने, पानी, सांस, या त्वचा के संपर्क से शरीर में घुसकर नर्वस सिस्टम, अंगों और मानसिक क्षमताओं को नुकसान पहुंचा सकता है।शोधकर्ताओं ने पाया कि ये नैनोक्रिस्टल्स बेहद संवेदनशील हैं और पारे की नैनोमोलर स्तर तक भी पहचान सकते हैं। जीवित कोशिकाओं पर किए गए परीक्षणों में ये नैनोक्रिस्टल्स गैर-विषैले साबित हुए और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना पारे की पहचान कर सके। इनका इस्तेमाल सिर्फ पारे तक सीमित नहीं है। ये अन्य हानिकारक धातुओं की पहचान, दवाओं के वितरण और उपचार की निगरानी के लिए भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
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