छात्र नेता से पार्षद और पार्षद से विधायक बनकर दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री बनने वाली रेखा गुप्ता के सामने कई प्रकार की चुनौतियां हैं। ये चुनौतियां अंदर और बाहर दोनों ही जगह हैं, जिन्हें उन्हें पार करना होगा। उनकी सबसे पहली चुनौती है, दिल्ली की जनता और भाजपा द्वारा जिन उम्मीदों और अपेक्षाओं को पाला गया है, उन्हें पूरा करना।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को उन सभी वादों और घोषणाओं को पूरा करना है, जो चुनाव के दौरान तीन चरणों में जारी किए गए चुनावी घोषणा पत्र में किए गए थे। इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कई बार सभाओं में दोहराया था। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को ‘संकल्प पत्र’ नाम दिया था, जिसमें यमुना की सफाई, स्वच्छ पेयजल, साफ हवा, प्रति वर्ष 50 हजार नई नौकरियों का सृजन, महिलाओं को प्रति माह 2500 रुपये देना, मुफ्त बस यात्रा, नालों, गलियों, सीवर की सफाई, सड़कों की मरम्मत और ट्रैफिक जाम से राहत जैसे वादे शामिल हैं, साथ ही आप सरकार की मुफ्त बिजली और पानी जैसी लोकलुभावन योजनाओं को जारी रखना भी शामिल है।
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पूर्ववर्ती नेताओं की छाया में: रेखा गुप्ता के लिए नई दिशा की चुनौती
चौथी महिला मुख्यमंत्री के रूप में रेखा गुप्ता को अपनी पूर्ववर्ती शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और आतिशी के कार्यों से आगे बढ़कर एक नई दिशा दिखानी होगी। विशेष रूप से, 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रही और दिल्ली की तस्वीर बदलने वाली शीला दीक्षित के कामकाज से रेखा के कार्यों की तुलना की जाएगी। इसके अलावा, रेखा गुप्ता को उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ सहयोग करते हुए यह संदेश भी देना होगा कि वह केवल एक कठपुतली मुख्यमंत्री नहीं हैं। इसके लिए उन्हें शीला और सुषमा का उदाहरण सामने रखना होगा।
रेखा गुप्ता के सामने विपक्ष, विशेष रूप से आम आदमी पार्टी के आक्रामक विरोध से निपटने की बड़ी चुनौती होगी। 22 विधायक और 43 फीसदी मत प्रतिशत वाली आप विधानसभा के भीतर और बाहर सरकार के खिलाफ कोई कसर नहीं छोड़ेगी। हालांकि, कांग्रेस के पास शून्य विधायक और महज साढ़े छह फीसदी वोट हैं, जिससे वह दिल्ली में कमजोर मानी जाती है, फिर भी वह हमले करती रहेगी। इन बाहरी चुनौतियों के साथ-साथ पार्टी के भीतर वे नेता, जिनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी, उनके भीतरघात से भी रेखा को सतर्क रहकर निपटने की जरूरत होगी।
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