वर्क लाइफ बैलेंस लंबे समय से वैश्विक चर्चा का विषय रहा है। इस पर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है। हाल ही में, इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने हर हफ्ते 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। वहीं, एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने कहा कि कर्मचारियों को हर हफ्ते रविवार सहित 90 घंटे काम करना चाहिए। लेकिन क्या यह सेहत के लिए सही है?
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अत्यधिक काम और बर्नआउट: सेहत पर असर और सलाह
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पूर्व मुख्य वैज्ञानिक और स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने इस पर कहा है कि अच्छी सेहत के लिए काम के साथ-साथ उचित आराम भी आवश्यक है। लंबे समय तक काम करने से न केवल कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है, बल्कि यह दीर्घकालिक रूप से स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकता है। लोगों को अपने शरीर की सुननी चाहिए और पहचानना चाहिए कि कब उन्हें आराम की आवश्यकता है। ज्यादा काम करने से थकान बढ़ती है और इसके साथ ही कार्यक्षमता और उत्पादकता भी घट सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक काम करने और पर्याप्त आराम न मिलने से सोचने-समझने की क्षमता और मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है। बड़ी संख्या में कर्मचारी बर्नआउट का सामना कर रहे हैं।
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डॉ. स्वामीनाथन ने बताया कि जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखा गया, कुछ समय के लिए अधिक घंटे काम करना जरूरी और उचित हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक ऐसा करने से शारीरिक और मानसिक सेहत पर नुकसान हो सकता है। महामारी के दौरान, कई स्वास्थ्यकर्मी बिना पर्याप्त नींद और अत्यधिक तनाव में लगातार काम कर रहे थे, जिससे कुछ ने अपना पेशा छोड़ दिया। कुछ महीनों तक यह स्थिति सहनीय हो सकती है, लेकिन सालों तक इसे बरकरार रखना मुश्किल है।
पहले बर्नआउट सिंड्रोम को समझें
बर्नआउट एक ऐसी स्थिति है जो आपके काम के घंटे से जुड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप लगातार थकान, कम प्रदर्शन और काम से निराशा या अलगाव की भावना उत्पन्न होती है। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर असर डालता है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नियोक्ता या कार्यस्थल कर्मचारियों के बीच तनाव की स्थिति पर ध्यान नहीं देते हैं, तो इससे नौकरी के प्रति असंतोष और कर्मचारियों की अनावश्यक अनुपस्थिति बढ़ सकती है। इसके परिणामस्वरूप ‘अपोजिट प्रेजेंटिज्म’ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें लोग काम पर तो आते हैं लेकिन उनकी उत्पादकता बहुत कम हो जाती है।
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