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    लखीमपुर खीरी जमानत …एक बार फिर चर्चा में है। जी हां, या यूं कहें कि तीसरी बार चर्चा में है। पहली बार इस जिले में महिला नेता की साड़ी खींच दी गई। आक्रोश हुआ सत्ता की हनक के खिलाफ। दूसरी बार – थार गाड़ी किसानों को कुचलते हुए निकल गई। मामला मंत्री और उनके बेटे से जुड़ा निकला तो फिर…आक्रोश हुआ, वो भी सत्ता की हनक के खिलाफ।

    अब चर्चा तीसरी बार हो रही है क्योंकि कल यानी 23 फरवरी को यहां मतदान है।

    इससे पहले यहां लोगों के मन में आक्रोश ही है। ये तब दिखा जब की रिपोर्टर मनीषा भल्ला लखीमपुर खीरी की 4 विधानसभा सीटों में ग्राउंड पर उतरीं और वोटर्स का मन टटोला।

    हर विधानसभा सीट पर किसानों और आम लोगों के बीच सत्ता के खिलाफ मुद्दे जिंदा दिखे।

    किसी ने किसान आंदोलन की बात की तो कोई बोला जूनियर टेनी बाहर है, तो क्या दोषी हम हैं? हालत ये है कि भाजपा प्रत्याशी निघासन क्षेत्र में जाने से डर रहे हैं। यह वही क्षेत्र

    आइए जानते हैं…क्या कुछ पता चला लखीमपुर खीरी की इस ग्राउंड रिपोर्ट में…
    दिल्ली बॉर्डर पर हुए किसान आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश में यह पहला विधानसभा चुनाव है।

    उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर नेपाल सीमा से लगता है।

    यह तराई का इलाका है। किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में मुख्य आरोपी केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा का जमानत पर रिहा होना लखीमपुर खीरी का इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा है। भाजपा के खिलाफ इस मुद्दे का खूब प्रचार प्रसार किया जा रहा है, यहां 80 फीसदी किसान हैं इसलिए यहां की आठों विधानसभा सीटों पर आशीष मिश्रा की जमानत के खिलाफ लोगों में गुस्सा है।

    2017 के चुनाव में जिले की सभी 8 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं।

    लेकिन किसान आंदोलन के बाद यहां समीकरण बदले हैं।

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