इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाले एक पैनल द्वारा तैयार किए गए मसौदे में सुझाव दिया गया है कि कक्षा दो तक के बच्चों के लिए कोई लिखित परीक्षा नहीं होनी चाहिए। वर्तमान मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली बहुत छोटे बच्चों की सीखने की क्षमता का आकलन करने के लिए उपयुक्त नहीं है। शिक्षा मंत्रालय ने स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का प्री-ड्राफ्ट जारी किया और छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों और विद्वानों जैसे हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किए।
समिति ने राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) के मसौदे में कहा कि ऐसी लिखित परीक्षा के जरिये मूल्यांकन की प्रक्रिया कक्षा तीन से शुरू की जानी चाहिए। समिति ने इस बात पर जोर देने की सिफारिश की है कि मूल्यांकन के तरीके ऐसे होने चाहिए जो किसी बच्चे पर अतिरिक्त बोझ न बढ़ाएं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की तर्ज पर विकसित किए जा रहे ढांचे से पता चलता है कि मूल्यांकन के दो महत्वपूर्ण तरीके जो बुनियादी चरण के लिए उपयुक्त हैं। इनमें उन कलाकृतियों का विश्लेषण करना जो बच्चे ने अपने सीखने के अनुभव के हिस्से के रूप में तैयार की हैं।
मूल्यांकन के तरीके
मसौदे में कहा गया है कि मूलभूत चरण प्री स्कूल से कक्षा दो तक के लिए परीक्षाएं पूरी तरह से अनुपयुक्त मूल्यांकन उपकरण हैं। बच्चों के सीखने के मूल्यांकन में विविधता होनी चाहिए। बच्चे अलग तरीके से सीखते हैं और सीखी हुई बातों को अलग तरह से जाहिर भी करते हैं। सीखने के परिणाम या योग्यता की उपलब्धि का आकलन करने के कई तरीके हो सकते हैं। आकलन की रिकॉर्डिंग करनी चाहिए और इनके व्यवस्थित संग्रह से बच्चों की प्रगति का विश्लेषण किया जाना चाहिए। मसौदे में सिफारिश की गई है कि प्रेप क्लासेस यानी प्रारंभिक चरण कक्षा तीन से पांच के लिए मूल्यांकन में लिखित परीक्षा शुरू की जानी चाहिए।
कैसे हो असेसमेंट?
एनसीएफ के मसौदे में सुझाव दिया गया है कि मध्य चरण यानी कक्षा छह से आठवीं तक में पाठ्यक्रम का ध्यान वैचारिक समझ और उच्च स्तर की क्षमताओं पर केंद्रित होना चाहिए। वहीं, सीखने का आकलन करने के लिए प्रोजेक्ट, डिबेट, प्रजेंटेशन, प्रैक्टिकल, इन्वेस्टिगेशन्स, रोल प्ले, पत्रिकाओं और पोर्टफोलियो जैसी कक्षा मूल्यांकन तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। मूल्यांकन में बहुविकल्पीय प्रश्न और लघु और दीर्घ प्रश्न उत्तर समय-समय पर उपयोग किए जा सकते हैं।