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    उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला, ‘क्लेम के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं’

    उपभोक्ता-अदालत

    कंज्यूमर फोरम कोर्ट ने कहा है कि अगर मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं है तब भी वह मेडिकल क्लेम फाइल कर सकता है वडोदरा के उपभोक्ता फोरम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मेडिकल इंश्योरेंस क्लेम करने के लिए किसी भी व्यक्ति का 24 घंटे अस्पताल में भर्ती रहना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अब समय बदल गया है और मरीजों को इलाज के लिए लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने की जरूरत नहीं है। उपभोक्ता फोरम के आदेश पर बीमा कंपनी को बीमा क्लेम का भुगतान करने का आदेश दिया।

    इस चर्चा का विषय क्या है?

    उपभोक्ता फोरम ने फैसला सुनाया है कि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के खिलाफ रमेश जोशी की शिकायत वैध है। कंपनी ने उनके बीमा दावे का भुगतान करने से इनकार कर दिया था, जिसके आधार पर जोशी ने शिकायत दर्ज कराई थी। उनकी पत्नी 2016 में डर्मेटोमायोसिटिस से पीड़ित थीं, और उन्हें अहमदाबाद के लाइफकेयर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च सेंटर में भर्ती कराया गया था। अगले दिन इलाज के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई।

    जोशी ने 44,468 रुपये के मेडिकल बिल के लिए अपनी बीमा कंपनी से भुगतान का दावा किया। बीमा कंपनी ने उनके दावे को खारिज कर दिया, यह तर्क देते हुए कि वह पॉलिसी की 24 घंटे की प्रवेश आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं। जोशी ने सभी कागजी कार्रवाई एक उपभोक्ता फोरम को सौंप दी, जिसमें कहा गया कि उनकी पत्नी को 24 नवंबर 2016 को शाम 5:38 बजे भर्ती कराया गया था और 25 नवंबर 2016 को शाम 6:30 बजे छुट्टी दे दी गई थी – जो 24 घंटे से अधिक थी। हालांकि, कंपनी ने उन्हें क्लेम का भुगतान नहीं किया।

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    उपभोक्ता अदालत

    क्या दृष्टीकोण है इसपर फोरम का ?

    उपभोक्ता फोरम ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि मरीज 24 घंटे से कम समय के लिए अस्पताल में भर्ती था तो भी उसे क्लेम का भुगतान किया जाए। आधुनिक समय में इलाज की नई-नई तकनीकों के आने से डॉक्टर उसी के अनुसार इलाज करते हैं। इस तरह से उनका इलाज करने में आमतौर पर कम समय लगता है। पहले मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था। अब कई बार मरीजों को बिना भर्ती किए इलाज किया जा रहा है। बीमा कंपनी इस आधार पर दावे से इनकार नहीं कर सकती कि मरीज को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था।

    फोरम ने फैसला सुनाया कि बीमा कंपनी यह तय नहीं कर सकती कि मरीज को अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी है या नहीं। नई तकनीक, दवाओं और मरीज की स्थिति के आधार पर सिर्फ डॉक्टर ही यह फैसला ले सकता है। बीमा कंपनी को दावा खारिज होने की तारीख से 9% ब्याज के साथ जोशी को 44,468 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था। इसके अलावा, बीमाकर्ता को मानसिक उत्पीड़न के लिए 3,000 रुपये और जोशी को मुकदमे के खर्च के लिए 2,000 रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया गया था।

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