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    चीन में पैदा हुआ दुनिया का पहला डिजायनर बेबी, DNA में छेड़छाड़ कर पैदा हुईं दो जुड़वां बच्चियां

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    Nov 27, 2018 technology

    बीजिंग एजेंसी। चीन में दुनिया का पहला जेनेटिकली मॉडिफाइड बच्चा पैदा होने का दावा किया गया है। यहां के एक शोधकर्ता का दावा है कि उन्होंने जेनिटिकली एडिटेड (डीएनए में छेड़छाड़) करके जुड़वां बच्चियों (लूलू और नाना) के भ्रूण को विकसित किया है, जिनका इसी महीने जन्म हुआ है। मानव भ्रूण में जीन को एडिट करने के लिए एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया है। शोधकर्ता हे जियांकुई ने कई साल तक लैब में चूहे, बंदर और इंसान के भ्रूण पर अध्ययन किया है। अपनी इस तकनीक के पेटेंट की उन्होंने अर्जी दी है।

    अमेरिका को छोड़ा पीछे
    इस अध्ययन में अमेरिका के फिजिक्स और बॉयोइंजीनियर प्रोफेसर माइकल डीम भी शामिल थे। चीन और अमेरिका काफी समय से जेनिटिकली एडिटेड भ्रूण पर शोध कर रहे थे। हालांकि, अमेरिका में जीन एडिटिंग प्रतिबंधित है। उनका मानना है कि डीएनए में कृत्रिम तरीके से किया परिवर्तन अगली पीढ़ी तक पहुंच सकता है और अन्य जीन्स को भी नुकसान पहुंचा सकता है। चीन में इंसानी क्लोन बनाने और अध्ययन पर बैन है, लेकिन इस तरह के शोध की इजाजत है। लिहाजा चीन ने दुनिया में पहली बार जेनिटिकली एडिटेड भ्रूण को इंसानी कोख में रखा और इसे पैदा करने में सफलता हासिल की।

    क्या है डिजाइनर बेबी?
    हर आदमी की चाहत होती है कि उनका बच्चा स्वस्थ व सुंदर हो। उसके बाल ऐसे हों, आंखें ऐसी हो वगैरह…वगैरह। आज के इस युग में वैज्ञानिक ऐसा करने में भी सक्षम हैं, लेकिन एक तबका इसे कुदरत के नियमों से छेड़छाड़ मानता है। इस तकनीक में भ्रूण के डीएनए से छेड़छाड़ यानी बदलाव किया जाता है।

    नतीजों पर नजर
    परीक्षण बताते हैं कि जुड़वा बच्चियों में से एक की जीन की दोनों प्रतियों में बदलाव आया है, जबकि दूसरी बच्ची के जीन की सिर्फ एक कॉपी में बदलाव है। हालांकि इससे उनके जीवन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। शोधकर्ता हे के मुताबिक, जीन की सिर्फ एक कॉपी में बदलाव वाली बच्ची में एचआइवी संक्रमण की संभावना है और सेहत भी प्रभावित हो सकती है।

    क्या थी प्रक्रिया
    अंडाणु और शुक्राणु का शरीर के बाहर निषेचन (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) कराया गया। जब भ्रूण तीन से पांच दिन का हुआ तो उसके जीन में बदलाव किया गया। शोध में शामिल जोड़ों में पुरुष एड्स से ग्रस्त थे और महिलाएं इससे सुरक्षित थीं। इन जोड़ों से पूछा गया कि वह बदलाव किए गए जीन वाले भ्रूण को रोपित कराना चाहेंगे या सामान्य जीन वाले भ्रूण को। 22 में से 16 भ्रूण के जीन में बदलाव किया गया था। इनमें से 11 भ्रूण को छह अलग-अलग महिलाओं के गर्भ में रोपने की कोशिश की गई। इसमें से सिर्फ जुड़वा बच्चियों के भ्रूण को रोपित करना सफल हुआ।

    प्रयोग जारी
    हाल के सालों में वैज्ञानिकों ने जीन में काट-छांट करने की नई तकनीक में क्रिस्पर/कैस-9 तैयार की है। इसमें कोशिका के स्तर तक जाकर डीएनए से रोगाणुओं वाले जीन को बाहर निकाल दिया जाता है और जरूरतमंद जीन को डाल दिया जाता है। हालांकि शुक्राणु, अंडाणु और भ्रूण में जीन एडिटिंग अलग अध्ययन है, जिसपर बदलाव भविष्य में देखे जा सकते हैं।

    क्यों है प्रतिबंध
    दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग पर चिंता जताते हुए इसे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ प्रयोग बताया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया के जीन एडिटिंग एक्सपर्ट और जेनेटिक जर्नल के संपादक किरन मुसुनुरु के मुताबिक, इंसान पर इस तरह का प्रयोग न सिर्फ विज्ञान बल्कि नैतिक तौर पर भी गलत है। वहीं, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुवांशिक वैज्ञानिक जॉर्ज चर्च इसे सही मानते हैं।

    प्रमाणिकता पर सवाल
    इस शोध में शामिल और जुड़वा बच्चियों को जन्म देने वाले जोड़े ने अपनी पहचान गोपनीय रखी है और शोध से जुड़े काम और स्थान जैसी जानकारियों को भी गुप्त रखा गया है। इस शोध रिपोर्ट को किसी भी पत्रिका या जनरल में प्रकाशित नहीं किया गया है। लिहाजा इसकी प्रामाणिकता और पुष्टि पर भी कई सवाल किए जा रहे हैं।

    एड्स का खतरा टलेगा
    हे के मुताबिक भ्रूण के जीन को एडिट करने का लक्ष्य आनुवंशिक बीमारी का इलाज या उनकी रोकथाम नहीं है। ये कुछ लोगों को स्वाभाविक रूप से एक विशेषता प्रदान करने की कोशिश है, जिसमें एचआइवी संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सके।

    एचआइवी के खतरे में चीन
    हे के मुताबिक चीन में एचआइवी संक्रमण बड़ा खतरा बन चुका है। इसीलिए एचआइवी जीन एडिटिंग प्रयोग किया गया। इसके लिए सीसीआर5 नामक एक जीन को अक्षम किया गया जो एचआइवी वायरस को बढ़ने में मदद करता है। ये वायरस कोशिका में प्रवेश कर एड्स का खतरा पैदा करता है। माता-पिता से बच्चे में एड्स की बीमारी आने की काफी संभावना होती है। फिलहाल बच्चे में एड्स और एचआइवी का खतरा रोकने के लिए कई प्रभावी दवाइयां मौजूद हैं, लेकिन जीन एडिटिंग तकनीक अभी तक प्रयोग में नहीं लाई गई है।

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