नई दिल्ली देश के इतिहास में शायद यह पहली दफा होगा, जब सीबीआइ और केंद्र सरकार एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं। इतना ही नहीं केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सीबीआइ प्रमुख आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वर्मा के इस कदम से निश्चित रूप से केंद्र सरकार के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर वर्मा को अवकाश पर भेजकर केंद्र सरकार ने किस कानून या प्रावधान का उल्लंघन किया है। सीबीआइ प्रमुख की नियुक्ति और हटाने की क्या है प्रक्रिया।
1997 सीबीआइ की स्वतंत्रता पर उठे सवाल
दरअसल, 1997 से पहले सीबीआई डायरेक्टर के पद पर किसी व्यक्ति रखने और उसे हटाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास सुरक्षित था। केंद्र सरकार अपनी मर्जी से कभी भी डायरेक्टर को हटा सकती थी। यही वजह है कि सीबीआइ पर सरकार की कटपुतली होने का आरोप लगते रहे हैं। विपक्ष ने कई बाद सरकार द्वारा सीबीआइ के दुरुपयोग के भी आरोप लगाए हैं। इसी के मद्देनजर 1997 सीबीआइ को सरकार की चंगुल से मुक्त करने के लिए इसके प्रमुख की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया में बदलाव की आवाज उठी। विनीत नारायण मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ निदेशक के कार्यकाल को कम से कम दो साल का कर दिया, ताकि डायरेक्टर केंद्र सरकार के दबाव से मुक्त हो सके।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सीबीआइ डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए एक चयन समिति के गठन का फैसला लिया, तब से औपचारिक तौर पर सीबीआइ प्रमुख की नियुक्ति के लिए यह समिति फैसला लेती है। सीबीआई के डायरेक्टर को हटाने के लिए पूरे मामले की जानकारी सेलेक्शन पैनल को भेजनी होती है, वहीं डायरेक्टर के तबादले से की प्रक्रिया में सेलेक्शन कमेटी सीवीसी, गृह सचिव और सचिव (कार्मिक) का होना भी जरूरी है।
कैसे होती है सीबीआई निदेशक की नियुक्ति
सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति की प्रक्रिया और प्रावधाान दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) अधिनियम, 1946 की धारा 4ए में वर्णित है। लेकिन 2013 में धारा 4ए को लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के बनने के बाद संशोधित किया गया था।
A- लोकपाल कानून के पूर्व
लोकपाल कानून के पूर्व सीबीआई निदेशक की नियुक्ति दिल्ली स्पेशल पुलिस एक्ट के तहत होती थी। इसके तहत सर्वप्रथम, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, गृह सचिव और कैबिनेट सचिवालय के सचिवों की समिति में संभावित उम्मीदवारों की सूची तैयार की जाती थी। इसके बाद अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री कार्यालय और गृह मंत्रालय के साथ बातचीत के बाद लिया जाता था।
B- लोकपाल कानून के बाद
हालांकि, लोकपाल कानून आने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी मामलों की जांच करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों की एक सूची तैयार की जाती है, जिसमें से किसी एक को सीबीआई निदेशक नियुक्त करना होता है। इसके बाद इस सूची को प्रशिक्षण विभाग के पास भेजा जाता है, जहां पर इसकी वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर आकलन किया जाता है। इसके बाद एक सूची लोकपाल सर्च कमेटी के पास भेजी जाती है, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता होते हैं। सर्च कमेटी नामों की जांच करती है और सरकार को सुझाव भेजती है।
सीबीआई प्रमुख को हटाने या तबादले के नियम
दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 4बी के तहत सीबीआई निदेशक का कार्यकाल पद भार ग्रहण करने से दो वर्ष तक का होता है। इससे पहले निदेशक को उसके पद से नहीं हटाया जा सकता। इसके अलावा धारा 4बी (2) के तहत सीबीआई निदेशक के तबादले की प्रक्रिया काे बताता है। इसके तहत अगर निदेशक का तबादला करना है तो उस समिति से सहमति लेनी होगी, जिसने सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति के लिए नाम की सिफारिश की थी।
1963 में सीबीआई का गठन
1963 में सीबीआई का गठन हुआ था। यह एक केंद्रीय जाच एजेंसी । सीबीआई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अपराधों जैसे हत्या, घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों और राष्ट्रीय हितों से संबंधित अपराधों की भारत सरकार की तरफ से जांच करती है।
विनीत नारायण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में विनीत नारायण बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में कहा था कि सीबीआई निदेशक, उसकी वरिष्ठता की तारीख के बावजूद, का कार्यकाल कम से कम दो साल का होगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी मामलों में उपयुक्त एक अधिकारी को केवल इस आधार पर अनदेखा नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि उसकी नियुक्ति की तारीख की वजह से दो साल से कम समय तक ही काम कर पाएगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेहद जरुरी स्थिति में अगर सीबीआई निदेशक का तबादला करना है तो उसमें चयन समिति की सहमति होनी चाहिए।
कौन हैं आलोक वर्मा
आलोक वर्मा 1979 बैच के एजीएमयूटी (अरुणाचल, गोवा, मिजोरम, केंद्र शासित प्रदेश) कैडर के आइपीएस अफसर हैं। सीबीआई निदेशक का पद ग्रहण करने के पूर्व वर्मा दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के पद पर तैनात रह चुके हैं। दिल्ली कारागार निदेशक, मिजोरम और पुडुचेरी के पुलिस प्रमुख भी रह चुके हैं। वर्मा सीबीआई के एकमात्र ऐसे प्रमुख हैं, जो एजेंसी के अंदर काम किए बगैर सीधे नियुक्त किए गए थे।
आखिर क्या है वर्मा की याचिका में
वर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि सीबीआई को केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) से आज़ाद करने की ज़रूरत है, क्योंकि डीओपीटी सीबीआई के स्वतंत्र तरीके से काम करने के ढंग को गंभीरता से प्रभावित करता है। उन्होंने कहा है कि सीबीआई से अपेक्षा की जाती है कि वह स्वतंत्रता से काम करे, लेकिन ऐसे मौके भी आते हैं जब उच्च पदों पर बैठे लोगों के ख़िलाफ़ जांच की जाती है जो कि सरकार के मन के मुताबिक़ नहीं होती है।
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