[रवि प्रकाश]। महात्मा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक और अब्राहम लिंकन या मार्टिन लूथर किंग से लेकर बराक ओबामा तक, जिन नेताओं को भाषणकला में महारत हासिल रही है, उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। सार्वजनिक जीवन, खासकर राजनीति में संवाद की बड़ी भूमिका है। नेता का कुशल वक्ता होना भी जरूरी है। अपार लोकप्रियता अर्जित की। जनता से सीधा संवाद कर सकने की कला विरले नेताओं में ही देखने को मिलती है। आज के दौर में नरेंद्र मोदी इसी कद के नेता हैं। जनता से संवाद की बेहद सहज लेकिन उतनी ही प्रभावपूर्ण शैली के वे धनी हैं। यह भी एक विशेषता है, जिसने ब्रांड मोदी की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए.
भाषण का स्वरूप नियोजित हो सकता है। लेकिन लिखे को पढ़ने की कला भी कम ही नेताओं को आती है। प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति सभी के बूते की बात नहीं। यही तो असल कला है। यह कला सीखी नहीं जा सकती है। यह केवल और केवल परवरिश से आती है। जनता के बीच से पैदा हुआ जमीनीखांटी नेता ही इस स्तर तक पहुंच सकता है। जैसे कि नरेंद्र मोदी। उन्हें सुनने वालों की फेहरिस्त में गरीब भी है और अमीर भी। हिंदू भी है और मुसलमान भी। देश के लोग भी हैं और दुनिया के भी। भाषण के दौरान उनकी सहजता उनकी बॉडी लैंग्वेज से भी झलकती है। यह जितनी सहज होती है, उतनी ही आक्रामक भी। विरोधियों को घेरना हो या मन की बात रखनी हो, हर बात निशाने पर जा बैठती है। पुलवामा हमले के बाद जब उन्होंने कहा- घर में घुसकर मारेंगे…, तब उनके चेहरे पर जो भाव थे, वे बता रहे थे कि यह महज भाषणबाजी नहीं है। विरोधी भले ही इसे जुमलेबाजी कहें, लेकिन शायद जनता इसे जुमलेबाजी नहीं मानती। गर मानती तो मोदी का नाम ब्रांड मोदी नहीं बन सकता था।
उन्हें डरना ही होगा,जिन्होंने देश को लूटा है..
सात फरवरी 2019: यहां मोदी का आत्मविश्वास और विपक्ष पर हमला इतना तेज था कि विपक्ष को बगले झांकनी पड़ी।संसद के शीतकालीन सत्र में पीएम मोदी का यह भाषण यादगार माना जाता है। कांग्रेस के लिए कहा कि आप इतनी तैयारी करो कि 2023 में फिर से संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़े। इस दिन कांग्रेस और विपक्ष पर मोदी का हमला लगातार बढ़ता ही जा रहा था और विपक्ष सिर्फ मुंह ताक रहा था। उन्होंने कहा- जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें डरना ही होगा। मोदी ने अपने भाषण में ‘सूरज को नहीं डूबने दूंगा’ की पंक्ति वाली एक कविता सुनाई। कहा- ‘सूरज जाएगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा। यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में, हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में।
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