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    अफगान लड़की ने चिट्ठी में बयां किया दर्द:हमारे पास पैसे नहीं, सामान बेचकर घर चला रहे; लोग पेट भरने के लिए चोरी तक करने लगे

    अफगानिस्तान की जाहिदा ने एक चिट्ठी लिखी है। ये साल भर बाद उसकी दूसरी चिट्ठी है। जाहिदा ने जब पहली चिट्ठी लिखी थी, तब तालिबान की फौज ने उनके शहर में घुसना शुरू किया था। अब देश में उसकी सरकार है।

    एक साल पहले अगस्त की 15 तारीख को तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था। तालिबान को 20 साल बाद दोबारा काबुल की सत्ता मिली थी। जाहिदा की उम्र भी 20 साल ही है। यानी इस एक साल को छोड़ उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बिना पाबंदियों के बिताई थी।

    इस एक साल में अफगानिस्तान में क्या बदला, इसे जाहिदा की जिंदगी से समझा जा सकता है।

    ये चिट्ठी जाहिदा ने लिखी है…
    मेरा नाम जाहिदा है। मैं 20 साल की हूं और फरयाब प्रांत के एक शहर में रहती हूं। पैदा होने के बाद से मैंने हमेशा अपने देश में युद्ध ही देखा है। एक साल पहले, जब देश पर तालिबान का कब्जा हुआ, तब मैंने यूनिवर्सिटी में दाखिले का एग्जाम पास किया था। मैं काबुल यूनिवर्सिटी में फार्मेसी मेजर में एडमिशन लेने वाली थी, लेकिन फिर यूनिवर्सिटी देख भी नहीं पाई।

    परिवार को हमारी फिक्र थी, इसलिए हमने घर बदल लिया। मां नौकरी करती थीं। वे टीचर थीं। तालिबान की सरकार आते ही स्कूल बंद होने लगे। मां को कई महीने घर में बैठना पड़ा। दो-तीन महीने लगा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन हर दिन के साथ हालात बिगड़ते ही चले गए।

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