अमेरिका में तब पतझड़ चल रहा था, जब गूगल में काम करती हसीन खवातीनों (महिलाओं) ने कीबोर्ड पर टकटकाती लंबी उंगलियां रोकीं, और कंपनी से बगावत कर दी। उनका कहना था कि बराबर काम के बावजूद उन्हें पुरुष साथियों से कम तनख्वाह मिलती है। वे तीन औरतें थीं, जबकि जिनके खिलाफ उन्होंने बयान दिया, वो दुनिया की चुनिंदा सबसे ताकतवर कंपनियों में से एक।
कंपनी इनकार करती रही, लेकिन औरतें थीं कि मदमस्त हाथी की तरह तोड़फोड़ ही करती रहीं। आखिर पांच सालों बाद गूगल ने माना कि कहीं ‘थोड़ी-बहुत’ ऊंच-नीच तो हुई है। बदले में वो अब मुकदमा करने वाली महिलाओं समेत 15 हजार औरतों को 118 मिलियन डॉलर से ज्यादा का मुआवजा देगा। वो खुश है। इतने सस्ते में उसे अगले कई सालों तक दुनिया की करोड़ों कामकाजी महिलाओं से नाइंसाफी की छूट मिल गई ।