एफ-35 एक “पांचवीं पीढ़ी” (फिफ्थ जनरेशन) का मल्टी-रोल फाइटर जेट है. जो उन्नत सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बने कॉम्बैट सिस्टम और डेटा शेयरिंग जैसी आधुनिक तकनीकों से लैस है.यह जेट रडार को चकमा देने में सक्षम है और इसे दुनिया का सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान माना जाता है.लेकिन इसकी कीमत भी लगभग 8 करोड़ डॉलर (करीब 670 करोड़ रुपये) प्रति यूनिट है, जो इसे सबसे महंगे जेट्स में से एक बनाती है.
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ऐसे में भारत के सामने एक सवाल ये है कि या अमेरिका से आधुनिक लेकिन बेहद महंगा एफ-35 खरीदे या फिर रूस के साथ रक्षा सहयोग को मज़बूत करते हुए उसके सबसे आधुनिक स्टेल्थ फाइटर जेट, सुखोई एसयू-57 का प्रोडक्शन अपने यहां करे.विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला इतना सीधा नहीं है. अमेरिका और रूस के बीच जो प्रतिद्वंद्विता है उसकी एक अहम झलक पिछले महीने बेंगलुरु में हुए एशिया के सबसे बड़े एयर शो, एयरो इंडिया में मिली.
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भारत के लिए एफ-35 की पेशकश: एक प्रतीकात्मक कदम या रणनीतिक चुनौती?
ट्रंप की एफ-35 की पेशकश प्रतीकात्मक लगती है ताकि अमेरिका अपने हथियारों की बिक्री बढ़ा सके. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एश्ले जे टेलिस का कहना है कि यह डील भारत के लिए काफी मुश्किल साबित हो सकती है.एएमसीए को भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) विकसित कर रहा है और यह भारत का अपना स्टेल्थ फाइटर जेट होगा.
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टेलिस ने कहा, “यह संभावना बहुत कम है कि अमेरिका एफ-35 के सह-निर्माण का अधिकार भारत को देगा. अगर भारत इसे खरीदता भी है, तो यह सिर्फ सीधी बिक्री होगी. यह प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया अभियान के अनुरूप नहीं होगा. साथ ही, एफ-35 की डील के बाद भारत पर जो सख्त एंड-यूज़र मॉनिटरिंग लागू होगी, वह भी भारत को रास नहीं आएगी.”
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