एक बड़े घटनाक्रम में, आरबीआई (RBI) टोकनाइजेशन का समय सीमा को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया था. आरबीआई द्वारा जारी बयान में कहा गया था कि सीओएफ डेटा के भंडारण की समय सीमा छह महीने यानी 30 जून, 2022 तक बढ़ा दी गई है.
बता दें, आरबीआई ने टोकन के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन दी थी. जिसका मतलब यह था कि 1 जनवरी से मर्चेंट यूजर्स के कार्ड की जानकारी स्टोर नहीं कर पाएंगे और उन्हें हर कार्ड नंबर को रैंडमाइज्ड टोकन नंबर से बदलना होगा. लेकिन आरबीआई द्वारा बढ़ाई गई समय सीमा अब 30 जून को समाप्त होने जा रही है. इस तारीख के बाद इसको लागू किए जाने की उम्मीद है.
उद्योग निकाय सीआईआई के अनुसार, भारत में अनुमानित 98.5 करोड़ कार्ड हैं, जिनका उपयोग 4,000 करोड़ रुपये के लगभग 1.5 करोड़ दैनिक लेनदेन के लिए किया जाता है. आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2020-21 में भारतीय डिजिटल भुगतान उद्योग का मूल्य 14,14,85,173 करोड़ रुपये था.
क्या है टोकनाइजेशन
टोकनाइजेशन वास्तविक कार्ड विवरण को “टोकन” नामक एक वैकल्पिक कोड के साथ बदलने के लिए संदर्भित करता है, जो कार्ड के संयोजन के लिए यूनिक होगा, टोकन अनुरोधकर्ता (यानी वह इकाई जो कार्ड के टोकन के लिए ग्राहक से अनुरोध स्वीकार करती है और इसे पास करती है) संबंधित टोकन जारी करने के लिए कार्ड नेटवर्क) और डिवाइस (इसके बाद “पहचाने गए डिवाइस” के रूप में संदर्भित).
लाभ
टोकनयुक्त कार्ड लेनदेन को सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि ट्रांजैक्शन के दौरान वास्तविक कार्ड विवरण मर्चैंट के साथ साझा नहीं किया जाता है.
- ग्राहकों के साथ विश्वास बनाने में मदद करता है.
- ज्यादा पेनाल्टी और नुकसान होने से बचाता है.
- बेहतर आंतरिक सुरक्षा प्रदान करता है.
- आवर्ती भुगतान की अनुमति देता है.
- यह PCI-DSS के अनुपालन को आसान बनाता है.
- पीसीआई-डीएसएस – भुगतान कार्ड उद्योग डेटा सुरक्षा मानक है.