• Mon. Dec 23rd, 2024

    गांधी टोपी की वजह से रुक गया असहयोग आंदोलन

    10 फरवरी 1922 को गुजरात के बारडोली तालुका में महात्मा गांधी सुबह की प्रार्थना के बाद से ही चुपचाप कोने में बैठे थे। नेहरू जेल में थे और पटेल समेत बाकी कार्यकर्ताओं के बीच चर्चा का एक ही मुद्दा था- 4 फरवरी 1922 को UP में हुआ चौरी-चौरा कांड। ये वही कांड था जिसमें गुस्साई भीड़ ने 22 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया था।

    तब असहयोग आंदोलन चरम पर था और देशभर से भरपूर समर्थन मिल रहा था। गांधीजी अचानक उठे और उन्होंने इस आंदोलन को खत्म करने का प्रस्ताव रख दिया। कुछ कार्यकर्ता खामोश रहे, लेकिन ज्यादातर ने इससे साफ इनकार कर दिया। तब गांधीजी चुप हो गए, लेकिन दो दिन बाद यानी 12 फरवरी को असहयोग आंदोलन को वापस लेते हुए 5 दिन के उपवास पर चले गए।

    दरअसल चौरी-चौरा शुरुआत से ही विवादों में रहा। जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तब सुभाष चंद्र बोस, मोतीलाल नेहरू, सीआर दास और रवींद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियों ने उनके इस फैसले की तीखी आलोचना की थी। अब 100 साल बाद चौरी-चौरा अपने शहीदों के स्मारक की वजह से विवादों में है।

    Share With Your Friends If you Loved it!