54 साल बाद आया है ये योग
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कृतिका नक्षत्र में जिस महाकाल की योग का निर्माण होता है वह 54 वर्षों बाद महा कार्तिकी योग इस वर्ष 23 नवंबर 2018 को बन रहा है। इस दिन प्रातः काल पूर्णिमा, कृतिका नक्षत्र में है आैर ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इस वर्ष गुरु वृश्चिक पर, शनि धनु पर , सूर्य वृश्चिक पर और शुक्रवार का विशेष फलदाई योग बन रहा है।
देव दीपावली आैर प्रकाश पर्व का आनंद
इस दिन जहां सिख समुदाय के लोग प्रकाश उत्सव मनाते हैं वहीं हिंदू मतावलंबी के शास्त्रों में इस दिन को देव दीपावली कहा जाता है। इस दिन दीपदान किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से निरोगी काया और सुख संपत्ति की प्राप्त होती है। इस दिन भगवान श्रीहरि का मत्स्य अवतार हुआ था इसलिए इस दिन गंगा स्नान के बाद दीपदान करने का भी विशेष महत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अंगिरा और आदित्य ने इस महा पुनीत दिन का महत्व स्वीकार किया है इसलिए इस दिन गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि करने के लिए शास्त्रों में बताया गया है। शास्त्र में कहा
शास्त्रानुसार कार्तिक पूर्णिमा का महातम्य
शास्त्रों में ऐसा हो वर्णित है कि इस पर्व पर गरीबों को दान देना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान दान आदि को महत्वपूर्ण आैर वरिष्ठ माना जाता है। इस दिन दान करने से पुष्कर तीर्थ का फल प्राप्त होता है। केला खजूर नारियल अनार संतरा बैंगन कुमार आदि फलों का दान उत्तम माना जाता है। इस दिन अपनी बहन, भांजे, बुआ और गरीबों को दान करने से भी पुण्य फल प्राप्त होता है। साथ ही मित्र, कुलीन व्यक्ति से पीड़ित और आशा से आए अतिथि को दान देने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
कुछ प्राचीन मान्यतायें
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश खुद कार्तिक पूर्णिमा को स्वरूप बदल कर स्नान करने आते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। सायं काल देवी मंदिरों में, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों और तुलसी के पौधों के पास दीपक प्रज्वलित किया जाना चाहिए। ऊंचाई पर दीपक अथवा लालटेन जलाकर की प्रकाश किया जाता है।
चंद्रमा उदय पर करें दान मिलेगा महा फल
कार्तिक पूर्णिमा को छह कृतिकाओं का पूजन कर रात्रि में दान करने पर शिव द्वारा विशेष फल प्राप्त होता है गाय, गजराज, रथ, घोड़ा, आदि का दान से संपत्ति मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध भी किया था। त्रिपुरा असुर ने एक लाख वर्ष तक तीर्थराज प्रयाग में भारी तपस्या की थी आैर उसके आत्मसंयम से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, आैर उससे वरदान मांगने को कहा। इस पर त्रिपुरासुर ने मनुष्य और देवताओं के हाथों ना मारे जाने का आर्शिवाद मांग लिया। तब देवताओं ने उसे कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव जी के साथ युद्ध करने को कहा आैर दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अंत में कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव जी ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से त्रिपुरासुर का वध कर दिया।
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