1 मार्च को यूक्रेन के खार्किव में गोलाबारी में मारे गए नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौदर का पार्थिव शरीर सोमवार तड़के तीन बजे बेंगलुरु पहुंच गया है। बेटे का शव देखते ही पिता शंकरप्पा कॉफिन से लिपटकर बिलखकर रोने लगे। वहां मौजूद लोगों ने उन्हें संभाला। इसके बाद शव को गांव ले जाया गया, यूक्रेन,जहां वीरा शैव परम्परा से शव का पूजन हुआ। शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है, इसके बाद उसे दावणगेरे के SS अस्पताल को मेडिकल स्टडीज के लिए दान किया जाएगा।
इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने बेंगलुरु एयरपोर्ट पहुंचकर नवीन को अंतिम श्रद्धांजलि दी। नवीन के पिता शंकरप्पा ने कहा- मेरा बेटा चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ हासिल करना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कम से कम उसके शरीर का उपयोग अन्य मेडिकल छात्र पढ़ाई के लिए कर सकते हैं। इसलिए, हमने चिकित्सा अनुसंधान के लिए अपने बेटे का शरीर दान करने का फैसला किया है।
रूसी गोलीबारी में हुई थी नवीन की मौत
21 साल के नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौदर खार्किव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में MBBS के छात्र थे। रूस का हमला होने के बाद अपने साथियों के साथ भारत लौटने का इंतजार कर रहे नवीन खाना खरीदने के लिए दुकान पर कतार में खड़े थे|
इसी दौरान रूसी सेना की फायरिंग में उनकी गोली लगने से मौत हो गई थी।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने नवीन के परिवार को 25 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी|
और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया है।
यूक्रेन के खार्किव में गोलाबारी में मारे गए नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौदर का पार्थिव शरीर सोमवार तड़के तीन बजे बेंगलुरु पहुंच गया है
97 फीसदी अंक लाकर भी भारत में सीट नहीं मिली थी
नवीन की मौत की खबर मिलने के बाद उनके पिता शंकरप्पा ने मीडिया से कहा था- भारत में जाति के हिसाब से सीटें आवंटित की जाती हैं। PUC में 97 फीसदी अंक हासिल करने के बावजूद मेरा बेटा राज्य में मेडिकल सीट हासिल नहीं कर सका था|
इस वजह से उसे पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजना पड़ा था।
खार्किव यूनिवर्सिटी ने जोखिम में डाली जान
नवीन अपने पिता से रोजाना कई बार फोन पर बात करता था।
युद्ध की संभावना के बीच उसने बताया था कि स्टूडेंट्स ने यूनिवर्सिटी से रिक्वेस्ट की थी|
कि वह छुट्टियां घोषित कर दे ताकि वे सभी देश वापसी की प्लानिंग कर सकें|
लेकिन यूनिवर्सिटी ने उनकी अपील खारिज कर दी और ये कहा कि कोई युद्ध नहीं होने वाला।
उन्हें जबरन रोका गया।
उनके पास खाना और पानी भी लिमिटेड था।
हमारे बच्चे 2000 किमी दूर थे बॉर्डर से, हमने दूतावास में बात की।
पेरेंट्स भी अपनी तरफ से कोशिशें कर रहे थे|
लेकिन कुछ नहीं हुआ और मैंने अपना बेटा खो दिया।