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    एक तरफ राजधानी कोलंबो की ओर दौड़ता हाईवे और दूसरी तरफ दुनिया को श्रीलंका से जोड़ता हमबनटोटा पोर्ट। चारों तरफ फैली हरियाली, साफ सड़कें, बिजली की लाइनें और पक्के बने घर। पहली नजर में ये गांव खुशहाल और तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ता दिखता है। लेकिन, यहां कुछ समय बिताते ही अंदाजा हो जाता है कि ये बदहाली में फंसा है। श्रीलंका के आखिरी ना ही हाईवे से इस गांव की तरफ बस आती है और ना ही हमबनटोटा पोर्ट से यहां के लोगों को रोजगार मिलता है।

    2004 की विनाशकारी सूनामी ने श्रीलंका के दक्षिणी तट के इस इलाके को बर्बाद कर दिया था। ताइवान की सरकार ने यहां पुनर्वास के लिए जू ची नाम से गांव बसाया था। यहां स्थानीय लोग रहते हैं जो अधिकतर मुसलमान हैं। ये दक्षिणी तट पर श्रीलंका का आखिरी गांव है।

    यहां ना कारोबार है ना रोजगार। लोग जैसे-तैसे अपनी जिंदगी काट रहे थे। श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट ने यहां के लोगों के लिए बेहद मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं।

    श्रीलंका के आखिरी ना ही हाईवे से इस गांव की तरफ बस आती है और ना ही हमबनटोटा पोर्ट से यहां के लोगों को रोजगार मिलता है।

    गांव में दाखिल होते ही हमें तीमुसम्मा नजर आती हैं।

    करीब 70 साल की तीमुसम्मा गांव के बाहर कचौड़ियां बेच रही हैं।

    उनकी बेटी ने सब्जी और मछली भरकर इन्हें बनाया है।

    घर के किसी और सदस्य के पास कोई काम नहीं है।

    तीमुसम्मा पूरे दिन कचौड़ियां बेचती हैं|

    तो बमुश्किल 1500 श्रीलंकाई रुपए (करीब 400 भारतीय रुपए) की बिक्री होती है।

    आधी से अधिक लागत लग जाती है।

    पांच लोगों के परिवार के खर्च के लिए वो बमुश्किल 700 रुपए (भारतीय रुपयों में करीब 175 रुपए) ही बचा पाती हैं।

    ये पैसा इतना भी नहीं होता कि परिवार के सभी लोग भरपेट खाना खा सकें।

    अपने घर के हालात बताते हुए उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।

    वो कहती हैं, ‘पहले हम 10 रुपए की एक कचौड़ी बेचते थे, अब 20 रुपए की एक है।

    सब-कुछ इतना महंगा हो गया है कि सारा पैसा लागत में ही चला जाता है।

    परिवार के लिए कुछ नहीं बचता।

    चीन के निवेश से बन रहा हमबनटोटा पोर्ट यहां से करीब पांच किलोमीटर दूर है।

    ये बंदरगाह और इसके आसपास का बड़ा इलाका चीन के नियंत्रण में है।

    यहां आसपास के लोगों को जाने की अनुमति नहीं है।

    तीमुसम्मा कहती हैं कि जब बंदरगाह बन रहा था तो उन्हें उम्मीद थी कि आसपास के लोगों को रोजगार मिलेगा।

    लेकिन, अब ये उम्मीद टूट गई है।

    वो कहती हैं, ‘इस पोर्ट से यहां के लोगों को कोई मदद नहीं मिली है।

    हम बुरे हाल में हैं और हमारे बारे में पूछने वाला कोई नहीं।’

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