केंद्र सरकार ने दशकों बाद नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) का दायरा कम करने का फैसला किया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर बताया कि AFSPA के तहत आने वाले क्षेत्रों में कमी।
सरकार के उग्रवाद को खत्म करने और पूर्वोत्तर में शांति लाने के लिए लगातार किए जा रहे प्रयासों का परिणाम है।
शाह के ऐलान के बाद AFSPA का दायरा घट जाएगा।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि, नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से तो इसका दायरा कम किया जा सकता है।
लेकिन कश्मीर में इससे खिलवाड़ करना, आतंकियों को एंट्री देने जैसा हो सकता है।
ऐसा क्यों, इसकी जानकारी आपको इस खबर के जरिए मिल सकती है..
नगालैंड में 14 मौतों के बाद तेज हो गई थी मांग
पिछले साल 4 दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में आर्म्ड फोर्सेज ने एक गाड़ी पर अंधाधुंध फायरिंग की थी।
उन्हें शक था कि गाड़ी में मिलिटेंट बैठे हैं, जबकि उस गाड़ी में मजदूर सवार थे जो मजदूरी करके लौट रहे थे।
इसमें 14 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद नॉर्थ ईस्ट के मणिपुर, मेघालय और असम में प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
लोगों की एक ही डिमांड थी कि आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट 1958 (AFSPA) को हटाया जाए ।
यही वो एक्ट है जो आर्म्ड फोर्सेज को संदिग्ध पर गोली चलाने, तलाशी लेने।
छापा मारने और हिरासत में लेने जैसे तमाम अधिकार देता है।
मणिपुर के CM और उनके कैबिनेट मंत्री भी खुलकर इस एक्ट के विरोध में आ गए थे।
इस घटना के बाद आर्म्ड फोर्सेज में सीनियर पोजिशन पर रहे दो एक्सपर्ट्स ।
से बात कर जाना था कि यह एक्ट क्या है और ये जरूरी क्यों है।
इस एक्ट को उन क्षेत्रों में ज्यादा लागू किया जाता है, जहां आतंकवाद फैला हुआ है ।