चीन लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश में दिलचस्पी दिखा रहा है. वे सीमा पर अपनी उपस्थिति जाहिर करने के लिए चीजें कर रहे हैं और अरुणाचल प्रदेश को नियंत्रित करने की कोशिश करने के लिए चालें अपना रहे हैं. लेकिन अमेरिका ने दखल देते हुए कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का है और हमेशा भारत का ही हिस्सा रहेगा.
एसएफआरसी की मंजूरी से प्रस्ताव को सीनेट के पटल पर पेश करने और पूर्ण सदन से इसके स्वीकार होने का रास्ता साफ हो गया है. ये प्रस्ताव ओरेगॉन के सीनेटर जेफ मर्कले और टेनेसी के बिल हैगर्टी ने पेश किया था. वहीं, टेक्सास के सीनेटर जॉन कॉर्निन, वर्जीनिया के टिम काइन और मैरीलैंड के क्रिस वान होलेन ने इसका समर्थन किया था.
क्यों महत्वपूर्ण?
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प्रस्ताव को एसएफआरसी की मंजूरी एक और संकेत है कि अमेरिकी सीनेट भारत के लिए समर्थन के एक मजबूत संस्था के रूप में उभर रही है. इसका मतलब है कि जब भविष्य में अमेरिकी प्रशासन द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने के लिए रक्षा और तकनीकी के क्षेत्र कांग्रेस से भारत के लिए विशेष छूट की मांग करेंगे तो सीनेट से इसमें मदद मिलेगी.
1962 के बाद से लगातार अमेरिकी प्रशासन ने अरुणाचल को भारत के हिस्से के रूप में मान्यता दी है, लेकिन मान्यता पर विधायी मुहर लगना भारत की वैधता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मजबूती देता है. खासतौर पर जब चीन लगातार इस पर अपना दावा करना जारी रखे हुए है.
अरुणाचल प्रदेश को जंगनान: चीन
चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताया है और इसे जंगनान कहता है. चीन दावा करता है कि यह दक्षिण तिब्बत है. चीन शीर्ष भारतीय नेताओं और अधिकारियों अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर भी विरोध जताता है. चीन के इस दावे को भारत ने खारिज किया है और इसे भारत का अविभाज्य अंग बताया है. भारत ने चीन की ऐसी किसी भी कोशिश को हमेशा खारिज किया है.
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