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    CAB (Citizenship Amendment Bill 2019): दिशाविहीन हुआ कैब विरोधी आंदोलन, असम में बिगड़ रहा माहौल

    ByVikram Mehta

    Dec 11, 2019 CAB, india
    Cab ProtestProtest against CAB 2019 in Assam

    असम बंद

    जिस वक्त  राज्यसभा में राष्ट्रीय नागरिकता विधेयक CAB (Citizenship Amendment Bill 2019) पर बहस चल रही थी, उस वक्त पूरे असम में अशांत माहौल हो रहा था। गुवाहाटी की सड़कों पर हजारों छात्र दिसपुर स्थिति राज्य सचिवाल की तरफ बढ़ रहे थे। उन्हें रोकने के लिए सुरक्षाबल अलग-अलग जगहों पर लाठियां और आंसू गैस के गोले चलाकर छात्रों को तितर-बितर कर रहे थे।

    इधर, मंगलवार के असम बंद के बाद आज सुबह स्थिति सामान्य थी, लेकिन विभिन्न कॉलेजों छात्र स्वतस्फूर्त सड़कों पर निकल आए। पूरे शहर छात्रों का दल प्रदर्शन कर रहा है। गुवाहाटी में अनहोनी की आशंका को देखते हुए बाजार बंद हो गए हैं। जबकि इस तरह के किसी आंदोलन की पूर्व घोषणा नहीं की गई थी। छात्रों के साथ अन्य लोग भी सड़क पर उतर आएं है।

    यही स्थिति असम की स्थिति भयावह होती जा रही है। ऊपरी असम में हजारों आंदोलनकारी जिला उपायुक्त कार्यालयों को घेर रहे हैं। हर स्कूल-कालेज के छात्र सड़कों पर हैं। इस वजह से बुधवार से गौहाटी विश्वविद्यालय, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय की परीक्षा रद्द कर दी गई। ऊपरी असम में कृषि मुक्त संग्राम समिति का ‘जाम करने’ करने का आंदोलन चल रहा है। शिवसागर में ओएनजीसी मुख्यालय को घेर लिया गया है। अलग-अलग नेतृत्वविहीन लोगों के आने से स्थिति अराजक होती जा रही है।

    आंदोलन कोई भी रूप ले सकता है। भाजपा नेताओं के निजी निवास पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। जहां कोई भाजपा नेता या मंत्री दिखता है, लोग घेर लेते हैं। इसी से समझा जा सकता है कि असम के लोग किसी कदर कैब के खिलाफ हैं। भाजपा नेतृत्व और राज्य सरकार ने भी इस स्तर के प्रतिवाद के बाद में अनुमान नहीं लगाया था।

    हालांकि मुख्यमंत्री सर्वानंद बार-बार कह रहे हैं कि छात्रों को आंदोलन में घसीटना उचित नहीं है। इससे उनका कैरियर और शिक्षा प्रभावित होगी। उन्होंने आश्वासन दिया है कि असम समझौते की धारा-6 को कारगर बनाकर असमिया लोगों संवैधानिक सुरक्षा दी जाएगी।

    नॉर्थ इस्ट डोमोक्रेटिक फ्रंट (नेता) डॉ हिमंत विश्व शर्मा का कहना है कि यह कैग बांग्लादेश से आकर बसे मात्र 5 हजार हिंदू शरणार्थियों नागरिकता मिलेगी। इससे असम पर प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन लोगों को उनके तर्क पर भरोसा नहीं है।

    असम सोमवार से ही बंद का दौर जारी हो गया था।  ऊपरी असम में इसका व्यापक प्रभाव देखा गया। यह सिलसिला लंबा चलेगा। बंद के अलावा भी विभिन्न संगठन अपने तरीके से इसका विरोध कर रहे हैं। जो हित में न हो, उसका विरोध होना चाहिए।

    हर नागरिक को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने का अधिकार है। लेकिन आंदोलन कर रहे समूहों को इस बात के लिए चौकस रहना होगा कि आंदोलन हिंसक रूप न ले। जिस तरह से डिब्रूगढ़ और सदिया में असम गण परिषद के कार्यालय में तोड़फोड़ की गई, उसकी जरूरत नहीं थी। यदि अगप से नाराजगी है तो अगप कार्यालय के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया जा सकता है, लेकिन कानून हाथ में लेने से परहेज करना चाहिए। आंदोलन में कई बार उत्तेजना या भावुकता में हिंसक घटनाएं घट जाती हैं।

    कई बार कुछ स्वार्थी तत्व आंदोलन को बदनाम करने के लिए हिंसक घटनाओं का अंजाम दे देते हैं। जब कोई आंदोलन लोकतांत्रिक तरीके से हटकर हिंसक हो जाता है तो प्रशासन को हस्तक्षेप का मौका मिल जाता है।

    हिंसा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का बहाना मिल जाता है। उसके बाद आंदोलन को दबाने के लिए दमन का चक्र आरंभ हो जाता है। वैसे भी हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। लोकतांत्रिक आंदोलन से भी सत्ता को झुकाया जा सकता है।

    मंगलवार और बुधवार के माहौल को देखते हुए लगता है कि हालात और खराब होंगे। इसका असर गुवाहाटी में होने वाले भारत और जापान के प्रधामंत्री की शिखर पर पड़ सकता है। पूरे गुवाहाटी को शिखर वार्ता के सजाया गया है। दीवालों पर रंग-रोगन किया है। उन दिवालों पर अब कैब विरोध लिखे गए हैं।

    इस आंदोलन का शुरुआत अखिल असम छात्र संघ ने और पूर्वोत्तर के छात्र संगठनों के साझा मंच नेसो ने किया है, लेकिन आंदोलन पर उनका नियंत्रण जूकता नजर आ रहा है। इसी वजह से आसू के सलाहकार डॉ समुज्ज्वल भट्टाचार्य ने छात्रों से अनुशासन में आंदोलन करने का आह्वान किया है। 

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