केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को चयन समिति में न्यायिक सदस्य की उपस्थिति से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह, चयन समिति में वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों की उपस्थिति को स्वतः पक्षपाती मानना उचित नहीं है। सरकार ने यह बताया कि सुप्रीम कोर्ट को यह स्वीकार करना चाहिए कि उच्च संवैधानिक पदाधिकारी जनहित में निष्ठापूर्वक और निरपेक्षता से काम करते हैं।
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चयन समिति में न्यायिक सदस्य की अनुपस्थिति के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की मांग:
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि चयन समिति में न्यायिक सदस्य के अनुपस्थिति से पक्षपात होगा, यह केंद्र सरकार द्वारा चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर अंतरिम रोक लगाने की मांग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में उक्त किया गया है। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस मामले पर सुनवाई करेगा, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्त कानून 2023 पर रोक लगाने की मांग है।
कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा शर्तें कानून 2023 के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की चयन समिति में भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) को बाहर रखने को चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है। गैर सरकारी संगठन एडीआर ने भी नए कानून के तहत नियुक्ति पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने अपनी अर्जी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अंतिम निर्णय तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियाँ रोकी जाएं।
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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए CJI को चयन समिति से बाहर किया गया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र सरकार ने एक नया कानून बनाया है जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े दल के नेता व प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री शामिल होता है। इस नए कानून में सीजेआइ को चयन समिति से बाहर किया गया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस विषय पर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया था, जिसमें अर्जी पर की गई गुहार के बारे में संदेह है।
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चुनाव आयुक्तों के खाली पड़े पदों को जल्दी भरने की मांग
केंद्र सरकार ने बुधवार को दाखिल किए गए जवाबी हलफनामे में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग का विरोध किया है। उन्होंने यह भी दलील दी है कि कोर्ट में मामला सुनवाई पर होने के कारण दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति 14 मार्च को जल्दबाजी में की गई थी। सरकार ने चुनाव आयुक्तों के पदों की रिक्तता और उसे भरने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की टाइम लाइन दी है। उन्होंने कहा है कि लोकसभा चुनाव और चार विधानसभाओं के चुनावों को देखते हुए चुनाव आयुक्तों के खाली पड़े पदों को जल्दी भरना आवश्यक था।
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