पश्चिम बंगाल के मालदा सुधारगृह में 36 साल की सजा काटने के बाद 104 वर्षीय रसिक्त चंद्र मंडल को रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उन्हें राहत देते हुए अंतरिम जमानत दी थी। मालदा जिले में जन्मे मंडल 1988 में अपने भाई की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए थे। यह हत्या जमीन विवाद के कारण हुई थी, जिसके चलते अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। मंडल को एक बार एक साल के लिए जमानत पर रिहा किया गया था, लेकिन जमानत की अवधि खत्म होने के बाद उन्हें दोबारा जेल भेज दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने पत्रकारों से बातचीत की।
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पश्चिम बंगाल : अब बागवानी और परिवार के साथ बिताएंगे समय
जेल से रिहा होने के बाद रसिक्त मंडल ने पत्रकारों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि अब वे बागवानी करेंगे और परिवार के साथ समय बिताएंगे। रसिक्त चंद्र मंडल का जन्म 1920 में मालदा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। मंडल ने कहा, “मुझे नहीं पता कि मैंने कितने साल जेल में बिताए। यह समय कभी खत्म न होने वाला महसूस हो रहा था। मुझे याद भी नहीं कि मुझे जेल कब लाया गया था। अब मैं बाहर आ गया हूं, अपने आंगन में पौधों की देखभाल करूंगा। मैंने अपने परिवार को बहुत याद किया और अब उनके साथ रहना चाहता हूं।”
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हत्या के मामले में हुी थी सजा
1988 में एक हत्या के मामले में 1994 में दोषी ठहराए जाने के बाद, जब वह 68 साल के थे, और आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। उन्हें उम्र संबंधी बीमारियों के कारण जेल से पश्चिम बंगाल के बालुरघाट के सुधार गृह में ट्रांसफर कर दिया गया था। सजा के खिलाफ उनकी अपील को 2018 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर यहां भी उसे निराशा हाथ लगी।
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