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    कोस्ट गार्ड में महिलाओं को परमानेंट कमीशन पर केंद्र से SC

    Gaurd

    अदालत ने पूछा कि कोस्ट गार्ड के साथ इतना उदासीन रवैया क्यों है और क्यों महिलाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता है. भारतीय मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने सरकार से कहा है कि अगर महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो उन्हें तटों की भी रक्षा करने का अधिकार है। उन्होंने ‘नारी शक्ति’ की बातें करते हुए कहा कि इसे अब यहां दिखाएं. इसके साथ ही, भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी आयुक्त (Permanent Commission) के रूप में नियुक्ति मिलने की कानूनी लड़ाई में कोस्ट गार्ड की भी एंट्री हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर सुनवाई की, जबकि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठाया.

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    अदालत ने पूछा कि कोस्ट गार्ड के साथ इतना उदासीन रवैया क्यों है और क्यों महिलाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता है. इस पर CJI ने कहा कि अगर महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो वे तटों की भी रक्षा कर सकती हैं. याचिकाकर्ता प्रियंका त्यागी ने खुद को कोस्ट गार्ड के ऑल विमेन क्रू का सदस्य बताया है, जो तटरक्षक बेड़े पर डोमियर विमानों की देखभाल के लिए तैनात किया गया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है और याचिका ने बबिता पूनिया के मामले की तरह फैसले की गुहार लगाई है.

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    नौसेना में महिलाएं हैं, तो कोस्ट गार्ड में भी ऐसा कोई विशेष कारण क्यों है

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आप सभी ने हमारा बबीता पुनिया के जजमेंट को अभी तक नहीं पढ़ा है. आपका पितृसत्तात्मक (Patriarchial) दृष्टिकोण है, जिससे हम महसूस कर रहे हैं कि आप महिलाओं को कोस्ट गार्ड क्षेत्र में नहीं देखना चाहते हैं. आपके पास नौसेना में महिलाएं हैं, तो कोस्ट गार्ड में भी ऐसा कोई विशेष कारण क्यों है, जिससे महिलाएं वहां नहीं हो सकतीं? हम पूरी तरह से खुले मन से इस विषय पर विचार करेंगे। ऐसा समय गया नहीं रहा है कि हम महिलाओं कोस्ट गार्ड में नहीं हो सकतीं कहें। अगर महिलाएं सीमाओं की रक्षा कर सकती हैं, तो वे तटों की भी रक्षा कर सकती हैं.”

    इस मामले में वरिष्ठ वकील अर्चना पाठक दवे ने विवाद पैदा किया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है. यह याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देती है, जिसमें याचिकाकर्ता को राहत नहीं मिली थी.

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