नियादी ढांचा ग्रोथ बढ़ाने में सहायक होता है। प्रति रुपये के आधार पर किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक रोजगार और उद्यमशीलता के मौके सृजित करता है। बड़े कारपोरेट की कुशलता में इससे वृद्धि होती है, सहायक कारोबारी क्षेत्रों को खुराक मिलती है, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उपक्रम पोषित होते हैं। और अंतत: समावेशी विकास को गति मिलती है। इसके अप्रत्यक्ष लाभ भी कई हैं। बुनियादी ढांचा प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है। यह मौके सृजित करता है। कारोबारी सुगमता के लिए मददगार होता है। जिंदगी को बेहतर करता है। ग्रामीण क्षेत्र में बुनियादी ढांचा समावेशी विकास के साथ गरीबी उन्मूलन में भी मददगार है।
पिछले दो दशक से अधिक समय से हमारी अर्थव्यवस्था कम उत्पादकता का शिखर छूती दिख रही है। इसमें नवोन्मेष किए जाने के साथ ऐसे मॉडल को अपनाए जाने की जरूरत है जिससे हम समय से पहले परिपक्व होते दिख रहे औद्योगिक चरण से हम बाहर निकल सकें। जिन अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे की कमी होती है उनका विकास बौनेपन का शिकार हो जाता है और वे पिछड़ जाते हैं। अपनी पूरी क्षमता से कम पर काम करने वाली अर्थव्यवस्था कई विसंगितयों की जननी बनती है। कई अन्य सामाजिक संकेतक मुश्किल में आते हैं। जिनका समग्र असर वहां के कमजोर इकोसिस्टम के रूप में नजर आता है। मजबूत बुनियादी ढांचा किसी उत्प्रेरक की तरह काम करता है। ग्रोथ को तेज करता है। संसाधनों का पुनर्आवंटन तेज ग्रोथ वाले क्षेत्रों में करता है। इसी तरह तैयार परिसंपत्तियां फार्म टू फैक्टरी सिद्धांत को फलीभूत करती हैं। संसाधन सघन से उच्च आय, उच्च पैदावार और उच्च क्षमतावान क्षेत्रों की तरफ ले जाता है।
भारतीय विकासगाथा के लिए बुनियादी ढांचा बेहद अहम है। इसलिए अपने समकक्ष देशों से प्रतिस्पर्धा के लिए इनका उनके समतुल्य होना बहुत जरूरी है। हालांकि हमारे नीति-नियंताओं ने डिजिटल फ्रेमवर्क तैयार किया है। आंत्रप्रन्योरों ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (मोबाइल टेलीफोन, सॉफ्टवेयर) का विकास किया है। इसके बावजूद भौतिक बुनियादी ढांचे को लंबे समय से उपेक्षित रखा गया। हम अपने सकल घरेलू उत्पाद के चार फीसद से भी कम बुनियादी ढांचे पर खर्च करते हैं। आज का चीन इस मद में 50 फीसद खर्च करता है।