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    प्रकाश सिंह बादल का निधन, 1996 में दिया पंजाबी और पंजाबियत का नारा

    Prakash Singh Badal

    पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल का निधन हो गया है. वो 95 साल के थे. अकाली दल के मीडिया सलाहकार जंगबीर सिंह ने बादल के निधन की पुष्टि की है. 

    दमा की समस्या गंभीर होने के कारण बादल को सांस लेने में तकलीफ़ हो रही थी, इसलिए इस महीने की 16 तारीख़ को उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 18 अप्रैल को उनकी स्थिति बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित किया गया था. 

    फोर्टिस अस्पताल, मोहाली की ओर से जारी एक मेडिकल बुलेटिन में बताया गया कि डॉ दिगंबर बेहरा के नेतृत्व में कई विभाग के डॉक्टर उनके इलाज में जुटे थे. लेकिन सभी उपाय करने के बाद भी उन्हें बचाया न जा सका. अस्पताल ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. 

    प्रकाश सिंह बादल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट कर दुख जताया है और उन्हें श्रद्धांजलि दी है. उन्होंने लिखा, “प्रकाश सिंह बादल का निधन मेरी निजी क्षति है. मेरा उनसे कई दशक से क़रीबी संपर्क रहा और उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. मुझे उनसे हुई कई बातचीत याद है, जिसमें उनकी समझदारी साफ़ तौर दिखती थी. उनके परिजन और उनके अनगिनत प्रशंसकों के प्रति हमारी संवेदनाएँ हैं.”

    “प्रकाश सिंह बादल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ. वे भारतीय राजनीति की एक महान हस्ती और एक बड़े नेता थे, जिन्होंने देश के लिए बहुत योगदान दिया. उन्होंने पंजाब की प्रगति के लिए अथक परिश्रम किया और कठिन समय में इस राज्य को सहारा दिया.”

    आंदोलनों को लेकर गए थे जेल 

    राजनीति में बादल की यात्रा स्वतंत्र भारत के साथ शुरू हुई, जब उन्हें 20 साल की उम्र में सरपंच के रूप में चुना गया. 1980 के दशक में लंबे उग्रवाद तक उन्होंने बहुत कुछ झेला. वह विभिन्न मोर्चों (आंदोलनों) के लिए जेल तक गए. संघवाद का कट्टर पक्षधर होने के बावजूद, उन्होंने कभी भी राज्य में उग्रवाद की चरम सीमा के दौरान भी भारत विरोधी रुख नहीं अपनाया. 

    अकाली दल को पंजाबी पार्टी में बदला 

    बादल ने शिरोमणि अकाली दल को भी पंथिक से पंजाबी पार्टी में बदलने का काम किया था, जब 1996 के मोगा घोषणापत्र में उन्होंने पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत का नारा दिया था. इसके बाद पार्टी ने बड़ी संख्या में हिंदू उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. उन्हें 2007 और 2012 में पार्टी की लगातार दो जीत का श्रेय दिया गया, जो राज्य के चुनावी इतिहास में अभूतपूर्व था.

    हमेशा रहे चौटाला परिवार के करीब 

    हालांकि, वह कभी अपनी सफलताओं को लोगों के सामने रखने से भी पीछे नहीं हटे हैं. एक पत्रकार ने बताया कि वह हमेशा कहते थे कि “अस्सी किसी तारां घुसरू डबरू करके सरकार बना लेंदे हैं”.  मतलब हम किसी भी तरह अपनी सरकार बना ही लेते हैं. वह दिवंगत डिप्टी पीएम चौधरी देवी लाल के ‘पग-वट’ भाई थे और अंत तक चौटाला परिवार के करीब रहे. 

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