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    माकपा व कांग्रेस ने केरल में हुए 1921 के मोपला या मालाबार विद्रोह में शामिल हुए लोगों के नाम एक किताब से हटाने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की है।

    दोनों दलों ने इसे आजादी के आंदोलन का हिस्सा बताया, जबकि आरएसएस ने इसे दंगा करार दिया है। 

    किताब से मोपला विद्रोह में शामिल लोगों के नाम हटाने की निंदा

    केरल में अब 1921 के मोपला या मालाबार विद्रोह को लेकर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है।

    मंगलवार को कांग्रेस व माकपा ने केंद्र पर आरोप लगाया कि उसने इससे संबंधित एक किताब से इस विद्रोह में शामिल हुए लोगों के नाम कथित तौर पर हटा दिए हैं।

    कांग्रेस व माकपा ने इस विद्रोह को आजादी के आंदोलन का एक हिस्सा बताया है।

    वहीं, आरएसएस ने इसे दंगा करार दिया है, जिसमें हिंदुओं पर अत्याचार किए गए थे। 

    केरल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सुधाकरन ने कहा कि ‘मालाबार क्रांति’ साम्राज्यवाद विरोधी ताकतों के खिलाफ एक चमकदार आंदोलन था।

    उन्होंने आरोप लगाया कि केवल संघ परिवार की ताकतें ही इस तरह के स्वतंत्रता संग्राम को सांप्रदायिक बता सकती हैं।

    कांग्रेस व माकपा के अलग-अलग बयान केरल में एक उग्र बहस के बीच आए हैं।

    यह बहस इस बात पर चल रही है कि क्या मालाबार विद्रोह जिसे मोपला विद्रोह भी कहा जाता है,

    अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था या सांप्रदायिक दंगा।

    क्यों पड़ा मोपला या मालाबार विद्रोह “विद्रोह” नाम?


    पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच उत्तरी केरल के मालाबार तट को व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है।

    1921 तक मालाबार में मोपला समुदाय तेजी से बढ़ रहा था।

    मोपला या मोप्पिला नाम मलयाली भाषा के मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

    19वीं सदी में यहां की 10 लाख की आबादी में से मोपला समुदाय की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत थी। 

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