लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कच्चाथीवू द्वीप एक बार फिर चुनावी मुद्दा बन रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर कहा है कि यह द्वीप भारत का हिस्सा था. लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे श्रीलंका को दे दिया. इस पर उन्होंने सवाल उठाया कि इस द्वीप को भारत के कब्जे में कैसे लाया जा सकता है. कच्चाथीवू द्वीप के बारे में और भी जानकारी के लिए.
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कच्चाथीवू द्वीप का इतिहास जुलाई 1880 में शुरू होता है. जब तमिलनाडु के रामनाथपुरम के जिला डिप्टी कलेक्टर एडवर्ड टर्नर और स्थानीय राजा के बीच एक पट्टा हुआ था. इस पट्टे के अनुसार, राजा को 70 गांवों और 11 द्वीपों का मालिकाना हक दिया गया, जिसमें से एक कच्चाथीवू द्वीप भी था. इसके बाद 1885 में भी एक ऐसा ही पट्टा बना.
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कच्चाथीवू द्वीप को लेकर संविदानीय जुड़े कई विवाद रहे हैं
द्वीप भारत के रामेश्वरम से 12 मील और जाफना के नेदुंडी से 10.5 मील दूर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 285 एकड़ है और इसकी अधिकतम चौड़ाई 300 मीटर है. इस द्वीप का नाम तमिल भाषा में ‘बंजर जमीन’ का मतलब होता है. हालांकि यहां हरा-भरा इलाका है. इसी द्वीप पर अंग्रेजी शासन के दौरान सेंट एंटनी चर्च निर्मित हुआ था, जो आज भी पूज्य है.
कच्चाथीवू द्वीप को लेकर संविदानीय जुड़े कई विवाद रहे हैं. और इसके बारे में आज भी बहस है कि इसे किसे सौंपा जाए. इसे लेकर कई राजनीतिक पक्ष भी अपने स्टैंड लेते हैं.
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