ब्रिटेन की संसद में ब्रेक्जिट समझौते पर मंगलवार को हुए ऐतिहासिक मतदान में प्रधानमंत्री टेरीजा मे को करारी हार का सामना करना पड़ा।
ब्रक्जिट डील पर हार के बाद अब ब्रिटेन की थेरेसा मे की प्रधानमंत्री की कुर्सी जाने का खतरा मंडरा रहा है।
ये मतदान बीते साल 11 दिसंबर को होना था लेकिन इसे टाल दिया गया था।
समझौते के पक्ष में 202 वोट पड़े, जबकि 232 सांसदों ने इसका विरोध किया। इसी के साथ यूरोपीय संघ के साथ ब्रेक्जिट को लेकर किया गया समझौता भी रद्द हो गया।
डील पर मिली ऐतिहासिक हार के बाद विपक्षी लेबर पार्टी ने सरकार के खिलाफ अविश्वास मत का प्रस्ताव दिया है, इस पर बुधवार को बहस होगी।
अभी तक किसी को ये नहीं पता है कि ब्रेक्सिट आखिर होगा कैसे और बहुत संभव है कि अगले सप्ताह के अंत तक भी इस बारे में स्थिति पूरी तरह साफ न हो पाए।
लेकिन इस मतदान से दो चीजें पता चल गई हैं, पहली ये कि टेरीजा मे की योजना का संसद में काफी हद तक विरोध हुआ है और दूसरा ये कि क्या उनके पास वैकल्पिक योजना भी है।
कई सांसदों और थेरेसा मे को समर्थन देने वाले दलों ने साफ कर दिया है कि उन्होंने केवल ब्रेक्जिट पर उनकी डील का विरोध किया है पीएम का नहीं।
28 देशों की सदस्यता वाले यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर हो जाने को ब्रेक्जिट कहा जा रहा है। इसे दुनिया में ब्रेक्जिट का नाम दिया गया है।
जो ब्रिटेन और एक्जिट दो शब्दों से मिलकर बना है। इस मुद्दे पर ब्रिटेन में पहला जनमत संग्रह 23 जून, 2016 को हुआ था।
इसमें अधिकतर लोगों ने संघ से अलग होने के पक्ष में मतदान किया था। इसके बाद थेरेसा मे प्रधानमंत्री बनीं।
अब ब्रिटेन 29 मार्च 2019 को यूरोपियन संघ से अलग होगा, लेकिन अगर संघ के सभी सदस्य इससे सहमत नहीं होते तो ये टल भी सकता है।
इस मुद्दे पर लगातार थेरेसा मे को उनकी ही सरकार के मंत्री कटघरे में खड़ा करते आए हैं। मे के करीब छह मंत्री इस मुद्दे पर इस्तीफा दे चुके हैं।
ब्रिटेन के इस फैसले का असर न केवल ब्रिटेन पर बल्कि भारत सहित दुनिया के बाकी देशों पर भी पड़ेगा।
अगर ब्रिटेन यूरोपियन संघ से अलग हो जाता है तो पौंड गिर जाएगा जिससे डॉलर की मांग बढ़ेगी। इससे पेट्रोल जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी।
वहीं भारत सबसे अधिक इसलिए प्रभावित होगा क्योंकि यूरोपियन संघ भारत के लिए सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है।
पिछले वर्ष दिसंबर में थेरेसा मे की सरकार से विज्ञान मंत्री सैम गिमाह ने इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने यह कहते हुए इस्तीफा दिया है कि ब्रेक्जिट देशहित में नहीं है।
डील पर हार के बाद अब थेरेसा मे के पास अब कुछ ही विकल्प बच गए हैं।
इन विकल्पों में एक है कि वह संसद में दोबारा ये योजना पेश कर सकती हैं और संसद की मंजूरी हासिल कर सकती हैं।
वहीं दूसरे विकल्प के तौर पर वह दोबारा यूरोपीय संघ से इस बाबत बात कर सकती हैं और एक नए समझौते को संसद में पेश कर सकती हैं।
तीसरा विकल्प ब्रेक्जिट पर दोबारा जनमत संग्रह कराने का भी है।
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