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    पिछले दिनों परेश रावल ने ट्वीट किया- ‘बॉयकाट हिमालया’। उनकी तरह हजारों लोग सोशल मीडिया पर हिमालया को बॉयकाट करने की एक मुहिम चला रहे थे। इस मुहिम की शुरुआत एक फोटो से होती है, जिसमें कंपनी ‘हलाल’ नीति को मानने की बात करती है। लोगों ने हलाल शब्द देखते ही इसे मांस से जोड़ लिया। अफवाह उड़ी कि हिमालया के प्रोडक्ट्स में मांस का इस्तेमाल होता है।

    कंपनी ने इसे पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि हमारे किसी प्रोडक्ट में मांस का इस्तेमाल नहीं होता है। प्रोडक्ट्स के निर्यात के लिए ऐसे सर्टिफिकेट की जरूरत होती है। इस पूरे विवाद ने हिमालया कंपनी को लेकर दिलचस्पी बढ़ा दी है। इसलिए आज हम आपको हलाल मुद्दे पर घिरी हिमालया के ब्रांड बनने की पूरी कहानी बता रहे हैं…

    शुरुआतः बौराए हाथियों को देखकर आया आइडिया

    आजादी से पहले की बात है। मुहम्मद मनाल नाम के शख्स बर्मा के जंगलों में घूम रहे थे।

    मनाल ने वहां कुछ बौराए हाथियों को देखा, जो खूब उधम मचा रहे थे ।

    वहां के स्थानीय लोगों ने हाथियों को कोई जड़ी-बूटी खिलाई और वो शांत हो गए।

    ये सब देख रहे मुहम्मद मनाल के दिमाग में एक सवाल कौंधा। यही सवाल हिमालया कंपनी की नींव बना।

    मोहम्मद मनाल ने 1930 में उत्तराखंड के देहरादून में इनामुल्लाह बिल्डिंग से हिमालया कंपनी की शुरुआत की।

    चुनौतीः एलोपैथी से मुकाबला करने की ठानी

    मुहम्मद मनाल आर्युवेद का मुकाबला एलोपैथी से करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें साइंटिफिक प्रमाण की जरूरत थी।

    मनाल ने रिसर्च शुरू की। रिसर्च के लिए सबसे पहले उस जड़ी को चुना, जो बर्मा के जंगलों में हाथियों को खिलाई गई थी।

    4 साल की रिसर्च के बाद मनाल ने दुनिया की पहली प्राकृतिक एंटीहाइपरटेंसिव दवा सर्पिना बनाई।

    उस समय मुहम्मद मनाल को यह किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा था।

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