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    क्यों मनाया जाता है ‘मकर संक्रांति’का त्योहार, जानिए क्या है इसका इतिहास

    ByShreya Hiwale

    May 14, 2020

    हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना एक विशेष महत्त्व है और इन्हें मनाने का तरीका भी अलग -अलग है.

    नए साल के पहले महीने जनवरी में मकर संक्रांति के महा पर्वों की शुरुआत होती है.

      किसी न किसी रूप में लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति को सेलिब्रेट करते हैं .

    वहीं इस खास दिन पर तिल, गुड़ के पकवानों का आनंद लिया जाता है साथ ही स्नान का भी विशेष महत्व होता है .

    आपको बता दें मकर संक्रांति का महापर्व सिर्फ उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि .

    दक्षिण भागों के साथ अलग-अलग राज्यों में अनेक नामों से मनाया जाता है.

    ऐसे में एक बात क्या आप जानते है कि हम सभी मकर संक्रांति को क्यों मनाते है.

    अगर नहीं जानते तो अब जान लीजिए . 

    दरअसल यह खगोल से जुड़ा हुआ है.  मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकल अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं.

    कहा जाता है कि इस खास दिन पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए खुद उनके घर में प्रवेश करते है .

    इस दौरान कहते है कि एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है. 

    बता दें वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति  बेहद अहम हैं जिनमें मेष, कर्क, तुला, मकर संक्रांति हैं. यही कारण है कि इस खास दिन को हम सभी मकर संक्रांति के नाम से जानते है और इसे मानते है .

    इस बार14 जनवरी को मकर संक्रांति के पर्व की तिथि है. 

    तिळगुळ घ्या आणि गोड गोड बोला

    उत्तर भारत में जहां इसे मकर संक्रांति कहा जाता है तो तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जाना जाता है.

    असम में इसे माघ बिहू और गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं.

    पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है

    भारत के अलग-अलग राज्यों में इस नाम  से मनाई जाती है मकर संक्रांति
    देश में मकर संक्रांति के पर्व को कई नामों से जाना जाता है .

    पंजाब और जम्‍मू-कश्‍मीर के लोग में इसे लोहड़ी के नाम से बड़े पैमाने पर मनाते हैं.

    लोहड़ी का त्‍योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है.

    जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं और स्‍त्री-पुरुष,घर के बच्चे  सज-धजकर नए-नए कपड़े पहनकर  जलते हुए अलाव के चारों ओर भांगड़ा डांस  करते हैं और अग्नि को मेवा, तिल, गजक, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं.

    सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हुए आपस में भेंट बांटते हैं और प्रसाद बाटते  हैं. प्रसाद में तिल, गुड़, मूंगफली, मक्‍का और गजक होती हैं.

     मकर संक्रांति को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है. जैसे-  पंजाब में माघी, हिमाचल प्रदेश में माघी साजी, जम्मू में माघी संग्रांद , हरियाणा में सकरत, मध्य भारत में सुकरत, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात के साथ उत्तर प्रदेश में उत्तरायण, ओडिशा में मकर संक्रांति, असम में माघ बिहू,अन्य नामों से संक्रांति को मनाते है .

    शुभ माना  जाता है 14 जनवरी का दिन   

    इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं. दरअसल मकर संक्रांति 14 जनवरी एक ऐसा दिन है.

    जब धरती पर एक अच्छे और शुभ दिन की शुरुआत होती है.

    ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है.

    जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है .

    लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत ,सुख और शांति को बढ़ाती हैं .

    मकर संक्रांति का महत्व
    मकर संक्रांति के शुभ दिन पर कहा जाता है यदि पवित्र नदी गंगा, यमुना, गोदावरी .

    कृष्णा और कावेर में कोई डुबकी लगता है तो वह अपने सभी अतीत और वर्तमान पापों को धो देता है और आपको एक स्वस्थ, समृद्ध और खुशहाल  जीवन प्रदान करता है.

    मकर संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है.

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