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    summer season

    अत्यधिक गर्मी खबरों में है, लेकिन अत्यधिक गर्मी का सबसे ज्यादा प्रभाव सबसे कमजोर लोगों पर पड़ता है, इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी सबको प्रभावित करती तो है, लेकिन यह सभी को समान रूप से प्रभावित नहीं करती।

    चूंकि देश के कई हिस्से भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं, ऐसे में, अधिकांश गरीब मजदूर, जो आमतौर पर घरों से बाहर काम करते हैं, गर्मी से मुकाबला करने में दूसरों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इनमें से अधिकांश के पास वास्तव में कोई विकल्प नहीं होता है। यदि वे काम नहीं करेंगे, तो उनके पास अपने और अपने परिवार के भरण-भोषण के लिए पैसा नहीं होगा। भारत जैसे देश में यह स्थिति बेहद खतरनाक है, जो कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में खुद को बदलने की कोशिश कर रहा है, लेकिन उसके पास पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा नहीं है।

    अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित देश भारत है

    भारत के पास हीट ऐक्शन प्लान (एचएपी) है। वर्ष 2013 में अहमदाबाद देश में पहली बार एचएपी के साथ सामने आया। वर्ष 2010 में अहमदाबाद में भीषण गर्मी के चलते 1,344 लोग मारे गए थे। उस घटना ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) को इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ-गांधीनगर (आईआईपीएच-जी) और अमेरिकी नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल (एनआरडीसी) के विशेषज्ञों के साथ मिलकर अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए एक योजना विकसित करने के लिए प्रेरित किया।

    दस वर्ष बाद देश में कई हीट ऐक्शन प्लान हैं। पहली बार अहमदाबाद में आजमाई गई कई अच्छी प्रथाओं को दोहराया जा रहा है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना ठंडी छत नीति (कूल रूफ पॉलिसी)-2023-2028 पेश करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। ठंडी छत ऐसी सामग्रियों से निर्मित होती है, जो कम गर्मी को बरकरार रखती है और सूर्य की धूप को बहुत ज्यादा अवशोषित करके पारंपरिक छतों की तुलना में घर को ठंडा रखती है। जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं, ये छतें ऐसी सामग्रियों से बनी और ढकी होती हैं, जिनमें छतों को पूरे दिन ठंडा रखने और इमारतों को आरामदायक बनाने की विशेषताएं होती हैं। ठंडी छतें काफी सस्ती और एयर कंडीशनर की तुलना में ज्यादा पर्यावरण अनुकूल होती हैं।

    अत्यधिक गर्मी से निपटने में कमियां बरकरार हैं

    लेकिन अब जबकि भारत पहले एचएपी के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुका है। एक प्रमुख मुद्दा कमजोर समूहों के लिए पर्याप्त स्थानीयकृत प्रतिक्रिया की कमी है। हाल ही में एक अध्ययन हुआ है, जिसका शीर्षक है-हाउ इज इंडिया एडॉप्टिंग टू हीटवेव्स? एक प्रमुख भारतीय थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के आदित्य पिल्लई और तमन्ना दलाल द्वारा ट्रांसफॉर्मेटिव क्लाइमेट ऐक्शन के लिए अंतर्दृष्टि के साथ हीट ऐक्शन प्लान का आकलन किया गया है, जो इसके साथ अन्य खामियों को चिह्नित करता है। इन लेखकों ने 18 राज्यों में नौ शहर, 13 जिले और 15 राज्य स्तरीय 37 हीट ऐक्शन प्लान का विश्लेषण किया। वे बताते हैं कि ज्यादातर हीट ऐक्शन प्लान स्थानीय जरूरतों के अनुरूप तैयार नहीं किए गए हैं और आपदा के बारे में अति सरलीकृत दृष्टिकोण रखते हैं।

    जैसा कि अर्श-रॉक के निदेशक कैथी बेटमैन मैकलियोड ने बताया कि भारत के असंगठित क्षेत्र में खतरनाक रूप से गर्म परिस्थितियों में लंबे समय तक श्रम करने के कारण महिलाओं को भारी पीड़ा होती है, जिसमें लंबे समय तक रहने वाले चकत्ते, संक्रमण, जलन और हृदय व गुर्दे की बीमारी शामिल है। एक्स्ट्रीम हीट इनकम इंश्योरेंस यह सुनिश्चित करेगा कि इन महिलाओं को अपने स्वास्थ्य या परिवार की वित्तीय सुरक्षा की सुरक्षा के बीच किसी एक को चुनने की आवश्यकता नहीं है। यह खुशी की बात है। अत्यधिक गर्मी से मुकाबला करने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, हमें उनमें व्याप्त कमियों का लगातार पता लगाते रहना चाहिए और समाज के सबसे कमजोर लोगों पर ध्यान देना चाहिए।

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